________________
[ = ]
स्वयं स्वयं के लिये हित है, वे पुरुष घोड़े की लीद के समान ऊपर से सुन्दर और भीतर से
सुन्दर, शल्य,
श्राकुलता व मलीनता से सहित हैं ।
ॐ क १६-६६१. महान् ज्ञानसम्पादन करके भी विषयकषाय के यश दीनवृचि बनाये तब मुकुट आदि आभूषणों से भूषित होकर भी मांगते फिरने वाले की तरह निन्द्य हैं | 5 ॐ फ्र
१७-६८४. आकुलता के कारण विषयों में प्रवृत्ति होती है,
प्रवृत्ति के समय भी आकुलता बनी रहती है, प्रवृत्ति के बाद भी लतायें रहा करती हैं, अतः विषय सम्बन्ध
सब ओर से आकुलतापूर्णं ही है ।
卐系统