________________
[]
१७ भ्रम
१ - २४. तुम अपने स्वरूप को ही जानते और इसी कारण स्वरूप में जो पर पदार्थ का प्रतिभास है उसे भी जानते, किन्तु इन्द्रियों के द्वारा जानने के कारण बाह्यदृष्टि की दशा में यह भ्रम होगया कि मैं एकदम सीधा पदार्थों को जानता हूँ ।
55
२- ३७. गुख अपने ज्ञान का याता, परन्तु जैसे सूखी हड्डी चवाने वाले कुत्ते को स्वाद तो अपने मुह से निकलते हुए खून का याता पर मानता हड्डी का स्वाद । इसी तरह मोही भी पर पदार्थ का सुख मानता होता स्वय का है।
फॐ फ्र
३-८२, इनका मुझ पर बडा स्नेह है यह सोचना भ्रम है, यदि परीक्षा करना हो तो उनके प्रतिकूल होकर देख लीजिये ।
फ्रॐ फ्र