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[ ६७ ] चाह करे तो क्या उड़ सकता है ? इसी तरह जिसका हृदय पवित्रता से रहित होगया अर्थात् विषयकपाय से मलीन होगया वह ज्ञान वाला भी हो, यदि दुःख सागर संसार से तिरना चाहे तो भी क्या तिर सकता है ? नहीं, वह तो उसमें डूबा ही रहेगा।
१३-६५६. चंदन का भार गधे पर लदा है, उस चंदन की सुगंध गधा नहीं ले सकता, आस पास रहने वाले मनुष्य उसकी सुगंध लेते हैं, इसी प्रकार विषयकषाय वाले मनुष्य के ज्ञान भी हो तो भी उस ज्ञान से उसे कोई लाभ नहीं है; उस ज्ञान से चाहे और मनुष्य लाभ ले लें किन्तु उसका कुछ हित नहीं हो पाता ।
१४-६५७. जैसे अंधे के हाथ में दीपक हो तो उस दीपक
से अंधे को क्या लाभ मिलता, इसी तरह विषयकषाय में लीन पुरुष के ज्ञान भी अच्छा हो तो उस ज्ञान से विषय कपाय वाले पुरुष को कोई लाभ नहीं है ।
१५-६५६, विषय कपास में लीन पुरुष ज्ञान की कला से
सुन्दर भी जचें तो भी वे अन्तरङ्ग में मलीन होने से