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[ ६१ ] . प्रति दुर्भावना नहीं रहती।
॥ ॐ 卐 ह-४०३. सांसारिक सुख, दुःख देकर नष्ट होता है और दुःख,
सुख देकर नष्ट होजाता है, अतः दुःख देकर नष्ट होने वाले का राग छोड़ा और सुख देकर नष्ट होने वाले (दुःख) में भय और अरवि मत करो क्योंकि दुःख देकर नष्ट होने वाले सुख से सुख देकर नष्ट होने वाला दुःख कहीं
१०-४३८, दुखी किस बात पर होना चाहिये ?- जब पाप परिणाम पैदा हो तब इस बात पर दुखी होना चाहियेकि यह पाप परिणाम क्यों पैदा होता है, क्योंकि यही पापपरिणाम दुःख का मूल है । सम्पदा, विपदा, इष्टवियोग, रोग आदि में क्या दुखी होना, वह सब तो कर्म की निर्जरा के अर्थ है।
११-५०१. परेशानी ! परेशानी !! ""कल्पित लाभ में बाधा आना मात्र ही परेशानी है, परेशानी वास्तविक वस्तु नहीं है ।
॥ ॐ ॥ १२-५५२, गरीव तो पैसा विना दुःखी हैं और धनी तृष्णा