________________
[ ] या संपदा, चित्त की निर्मलता ही उत्तम कार्य है ।
२१-८३०. कषायरूप मल को दूर हटा कर अपने को पवित्र
बनायो, जगत में तुम पर का कर ही क्या सकते ?
२३-८४७. पवित्रता वाद्यवस्तु से नहीं आती किन्तु अपवित्रता का जो कारण है उसे हटाने से आती, कषाय (मोह रागद्वष) को हटाने से आत्मा पवित्र होगा तथा अपवित्रता से परिपूर्ण इस शरीर का वियोग होकर सदा पवित्रता हो जायगी।
ॐ ॐ ॐ