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[ ७८ ] णाम नहीं है ? अवश्य है, अतः मनोहर ! शरीर को नीरोग करने के लिये अब औषधि और उपचार से दृष्टि हटा कर अपने परिणाम की निर्मलता रूप औषधि व उपचार का सेवन करो।
१७-४७०. सर्वज्ञ व क्रमबद्ध पर्याय पर विश्वास न रखने वालों का मन बेलगाम दौड़ लगाता ही रहता है जिससे मलीनता बढ़ती ही जातो, यहां एक शंका हो सकती है फिर प्रमादी हो जाने से व्यवहार बंद हो जायगा इसका उत्तर यह है कि तत्त्वश्रद्धालु होने पर भी उसके जो राग का उदय है वह व्यवहार बनाये रहता अथवा तुझे व्यवहार को क्या पड़ी ? आत्ममग्न होकर पूर्ण पवित्र बन और दुःख से छुटकारा पा।
१६-५६०. काम एक महान् अन्धकार है जिसमें हितमार्ग तो सूझता ही नहीं, काम एक महती ज्वाला है जिसमें
आत्मा मुनता रहता है और काम की करतूत है क्या ? खून हाड़ मास वाले चाम से अनुराग करना, और अपना वीर्य पात कर अपनी शक्ति खोना और आपदावों का