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११- ३५५. ब्रह्मचर्य लेने पर भी जो मानसशुद्धिहानि होती है उसके निराकरण के अर्थ ऐसा भी चिन्तवन करोइस पत्र में अन्यथा बात तो हो ही नहीं सकती और तुम्हें भी अतिक्रम अनिष्ट है उसे हृदय से चाहते भी नहीं फिर क्यों ऊपरी और थोथी कल्पनावों से अपने विकास को रोके हो, इसमें तो तुम्हारी वह दशा है जो न इस पार के रहे न उस पार के, अतः असत्कल्पना का त्याग अथवा अशुचि भावना का चिन्तवन करो । फॐ फ १२- ३८३. ब्रह्मचर्य परमतप है और शुद्धात्मभक्ति परमकार्य है, अपने जीवन में शील और भक्ति का प्रसार कर पवित्र बनो और अलौकिक सुख प्राप्त करे। ।
फ्र ॐ -
१३- ४०७. विविध तपस्या के लाभ यह हैं - ब्रह्मचर्य पुष्टि, देहशुद्धि, परिचयविनाश, निजात्मकार्य को उत्सुकता, ध्यान, रागहानि धीरता, सद्विचार, आशाक्षय, इन्द्रियविजय, प्राणिरक्षा |
फ्रॐ ॐ
१४-४१३, जब शरीरनिष्पत्ति में मूलनिमित्त आत्मपरिणाम है तब क्या शरीर की नीरोगता में मूलनिमित्त आत्म परि