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[ ७६ ] ८-१७५. रे विधि ! मेरे साथ रहने में तो तेरी शुद्धि की
संभावना भी नहीं, साथ छोड़ने के बाद तू शुद्धावस्थ भी हो सकता है, अतः हम तुम दोनों की शुद्धि के लिये सम्बन्ध छूटना आवश्यक है इसलिये मेरा साथ छोड़ ताकि मैं पिलं नहीं और तेरी विकृतावस्था मेरे निमित्त से होवे नहीं।
ह-२२३. रे प्रात्मन् ! तू जो कर चुका व कर रहा व
करेगा उन बातों को अनन्त परमात्मा स्पष्ट जानते हैं तू यह मत सोच कि काई जानने वाला नहीं, यहां तो बात खुलने पर दो चार सौ आदमी ही जानते पर वहां तो अनन्त परमात्मा जान रहे हैं तथा उन चेष्टावों का फल भी तू नियम से पावेगा, अतः अपनी पवित्रता की रक्षा कर।
१०-२४०. प्रसन्नता का अर्थ निर्मलता है, निर्मलता ही
सत्यसुख है, परन्तु लौकिक जन इस रहस्य को नहीं समझते तभी तो उन्होंने काल्पनिक इन्द्रियजन्य सुख या खुशी का ही प्रसन्नता कह डाला।
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