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[ ७३ ] ७-१६६. मरण तो समाधिमरण होता किन्तु जन्म समाधिजन्म नहीं होता, आयुक्षय के अनंतर तो मुक्ति होती परन्तु आयु के उदय में मुक्ति नहीं होती।
८-१३१. आहार भय मैथुन परिग्रह चार संज्ञा रूपी ज्वर
से पीड़ित संसारी जन को दुर्लभ जिनोपदेश कटु, विपाकमधुर औपधि है, इसे नेत्र बंद करके कर्णपात्र से पी लेना चाहिये। .
१-३६. खेद है -कि दुर्लभ मनुष्य जन्म सत्कुल आदि पा
कर भी प्राणी विस्तृत मत मतान्तरों के संदोह के संदेह में शिवपथ का निर्णय व अनुसरण नहीं कर पाता। हाँ ऐसे झूले के अवसर में सब बातों को छोड़कर यदि खुद का निरीक्षण करे तो शान्ति पथ दिख भी सकता है।
-७६३. काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकारों से रहित आत्मा की सहज स्थिति पाना ही अमूल्य वैभव. है। इसका ही लक्ष्य रखो।
ॐ ॐ ॐ