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। १३ पवित्रता
१-४१. पागेदयी पापात्मा भी बन सकता व पुण्यात्मा (पवित्र आत्मा) भी बन सकता, पायोदय में हानि नहीं किन्तु पापात्मा हो जाने में निज गुण की हानि है। .
२-४२. पुण्योदयी पुण्यात्मा भी हो सकता और पापात्मा
भी बन सकता, पुण्योदय में लाभ नहीं, पुण्यात्मा बनने में लाभ है।
३-५६. ब्रह्मचर्य की सिद्धि के लिये स्त्रियों को जननी के
शक्ल में निरखो (उनमें अपने माता के रूप को स्थापना करो)।
४-५७. मनोविकार पाप है, कायकृत पोप के बाद मनःकृत
पाप को हटाने के प्रयत्न. में चिन्ता का अवसर नहीं मिलता अतः कायकृत पाप मनःकृत पाप से अधिक