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खेद की बात है जो श्रेष्ठ मन पा कर भी सदुपयोग न करें।
४-६०८. अन्य भवों में किये हुए पाप मनुष्य भव में धोये
(नष्ट किये) जा सकते हैं, यदि मनुष्य भव में ही पाप किये जावे तो उनका विनाश फिर कहां हो ? यह मनुष्य भव दुर्लभ है इसलिये मनुष्य भव को पाकर पापों के नाश करने में प्रान्मधर्म के पालन व वद्धन में ही उपयोग करो।
| करा।
५-४५५. इस लोक में बड़प्पन सँभाला तो क्या हुआ ?
बड़प्पन तो वही है जिसके बाद अवनति न हो, यदि परमार्थवृत्ति न रखी तब ढकासला अधिक से अधिक इस जीवन तक ही चल सकता, मृत्यु बाद तो नियम से खोटी दशा होगी।
___# ॐ ॐ ६-२७५, मनाहर ! यह मनुष्यत्व अति दुर्लभ है चिन्ता
ग्रस्त रह कर जीवन व्यर्थ मत खाओ।