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१२ तत्वदुर्लभता
१-७३७. सबसे दुर्लभ तो आत्मस्थिरता है उसके पाने पर
फिर कोई भी स्थिति पाने योग्य नहीं रहती।
२-७३६. अात्मन् ! तू ने इस समय जो सोधन पाया
सोच तो सही-कितना दुर्लभ था-जो पा लिया, संसार के प्राणियों को ओर देख-कोई निगोद है कोई अन्य स्थावर है, कोई कीट मच्छर है, कोई नारकी, कोई पशु पक्षी है, कोई नीच है, गरीव है, अज्ञानी है, विषयी है, सत्य धर्म से विमुख है, परन्तु तुम तो इन सब गड्ढों को पार करके शांति तल पर ओगये अब प्रमोदी व कषायो होना योग्य नहीं। अन्यथा फिर गड्ढों में ही सड़ोगे।
३-६७६. इस मनुष्यभव में न चेते तो फिर नरक तिर्यश्च.
गति की भटकना, न जाने, कब तक रहती रहेगी, बड़े