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[ ७० ] यक होतो जाता है। आत्मा की शुद्ध शक्ति को देख, ''सब झंझट निकल जावेगा।
१०-८२३. आत्मा की शक्ति तो अचिन्त्य है परन्तु जैसे
कोई ईंट से ही शिर मार कर अपना ही खून करता है इसी तरह मोही आत्मा वाह्य वैभव से ही शिर मार कर अपनी हत्या करता है।
११-८३६. जिसे आत्मशक्ति पर विश्वास नहीं वह शांति का पात्र नहीं हो सकता।
+ ॐ ॐ १२-८४६, अहंकार और ममकार को समाप्त करके सर्व
प्राणियों के अन्दर चेतना भगवती शक्ति का दर्शन करने वाला पुरुष संत है।