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[ ६६ ] (सदेव) फिर प्रादुर्भूत नहीं हो सकता इसलिये अब पला विचार करने की आदत डालो कि ज्ञान में अमर्याद और प्रबल शक्ति है।
--६६२. ज्ञानी जीव सिंह के समान पराक्रमी होता है, परन्तु जैसे सिंह ही लोहे के पिंजड़े में आ जाय तो वह दीन बन कर जीवन गुजारता इसी तरह ज्ञानवान् होकर भी विषयझपाय के पिंजड़े में जकड़ा रहे तब वह भी दीन बन कर जीवन व्यतीत कर रहा है। अरे आत्मन् !
अपनी शुद्ध शक्ति देख, विषयकषाय के पिंजड़े को तोड़। १-६६४. विशाल बलवान् हाथी भी कर्दम में फंस जाय तो बड़ा आश्चर्य है इसी तरह उत्तम ज्ञानी व शक्तिमोन्
आत्मा भी विषयकषाय में फंस जाय तो बड़े खेद की बात है। तथा च वह हाथी वर्दम में फंसता है तो
सता हो जाता है इसी तरह ज्ञानी भी यदि विषयकषाय में फंसे तो प्रायः फंसता ही जाता है क्योंकि उस घनिष्ठ फंसाब में वैसा ज्ञान भी सहायक होता जाता है, जैसे हाथो के फंसाव में हाथी का बल और वजन सहा