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[ ६६ ] १३-७२१. सुख, दुःख का अभाव है, दुःख रागमात्र है
अतः राग का अभाव ही सुख है, जब राग का अभाव हुया तब जो गुण है अपने रूप में रह गया । आत्मा में अनेक गुण हैं परन्तु सब का वेदन ज्ञानगुण द्वारा होता है अतः यह बात हुई जब ज्ञान को राग का वेदन न करना हुआ तब सुख हो है इसलिये केवल ज्ञान का सुख है अर्थात् "ज्ञान ही सुख है"।
२०--७२२ अव्यावाध प्रतिजीवी गुण है, प्रतीत होता है कि व्याबाधा वेदनीय के उदय से थी, वेदनीय के क्षय से बाधा मिट गई वह अव्यावाध अभावामक प्रतिजीवी गुण हुआ। 'संसार सुख नियम से दुःख ही है' सर्व दुःखों का अभाव ही सुख है और वह सुख वेदनीय के क्षय होने पर होता है।