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[ ६५ ] १४-४४७ परमानन्द की प्राप्ति के अर्थ तो मब से चित हटाना ही होगा।
ॐ ॐ ॐ १५-६८२ किसी भी आत्मा से मोह राग न करने वाला
और पञ्चेन्द्रिय के विषयों में रुचि न करने वाला मनुष्य खत्य सुखी रह सकता है।
१६-६६२ भाई माह हटाया और मुखी हालो सुख का
इससे अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है।
१७-७१०. सदाचार ही मुख है, सदाचारी सहजानन्द की छाया में रह कर शान्त जीवन व्यतीत करता है तथा
आत्मवली बनकर संसार के दुःखों से सदैव छूट जाता है।
ॐ ॐ ॥ १८-७१४. सदाचार ही मुख का जनक है, जहां परिणामों
में लेश विषमता आती है। यदि वहां के पदार्थो के कारण हाती हा ता तत्काल उस स्थान को छोड़ देन चाहिये।