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________________ प्ररूपणाओनुं जाहेरमा तात्त्विक अने सैद्धांतिक खंडन करीने अनेक श्रावकोने मार्गाभिमुख बनावेला, जे तेमना जीवननुं उज्ज्वल पासुं छे. जीवनना पाछला वर्षोमां श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथ दादा तथा शासनदेवी श्रीपद्मावतीदेवीनी आराधना प्रत्ये विशेष रुचि तथा आस्था रही हती. तेओ ते बनेनी जपसाधना करता अने ते साधनानो प्रभाव पण अनुभवता. घणा लोको अतिरेक करीने जातजातनी वातो चलावता पण तेओ स्पष्टपणे निषेध करता, आज तेमनी आंतरिक जागृतिनो परिचय लाधी रहे छे. 14 अने छल्ले वि.सं. २०४८ना वर्षे आसो वद- १ना गोधरानगरे नवकारमंत्रनुं आराधन करतां समाधिपूर्वक काळधर्म पाम्या. " ग्रंथकर्ता श्रीनी श्रुतोपासना - संस्कृत करुणरसकदम्बकम्, कारकमाला, ज्ञानसार (मूल), अष्टक प्रकरण (विवृत्ति सहित), गणधरवाद (विशेषावश्यकान्तर्गत- विवृत्ति सहित) नरविक्रमचरित्र (प्राकृत संस्कृत छाया सहित), शांतिजिनमहिजन स्तोत्रम्, - प्राकृत ज्ञानसार (टीका), वीतरागस्तोत्र (टीका), आरामसोहा कहा, धळवाल कहा, जंबूस्वामी चरित्र, विजयचंदकेवली चरित्र गुजराती - श्रावकधर्मविधान (प्रथम पंचाशकनुं विस्तृत भाषांतर), जय-विजय कथा, हंसराजानी कथा, संस्कारज्योत (१-२), 15 देववंदनमाला, जिनगुणरत्नावली, महावीर पंच कल्याणक पूजा. हरिबलमच्छी कथा, अपर मा, चंदननी वाडी, आदर्श सज्झाय माला, स्वाध्याय पुष्पावली जैन तर्कभाषा (टीका) अद्यावधि अप्रकाशित छे. आम, आ गुरुभगवंत मात्र श्रीपद्मावतीदेवींना उपासक ज हता, एवं नथी. परंतु संस्कृत - प्राकृत - द्रव्यानुयोगमां प्रभुत्व धरावनारा पण हता. ते आ तेमनी श्रुतोपासना उपरथी समजी शकाय छे. पुनः संपादननुं निदान - आ ग्रंथनुं संपादन आजथी ५१ वर्ष पूर्वे वि.सं. २०१६मां ग्रंथकर्ता श्रीशुभंकरविजयजीना संसारपक्षे भत्रीजा अने संयमजीवनमां तेमना ज शिष्य मुनिश्रीसूर्योदयविजयजीए करेल हतुं. ते समये आ ग्रंथनी खूब महत्ता हती. परंतु ते पछी कालना प्रभावे ज्ञान तरफनी उपेक्षा वधते जते आ ग्रंथनी महत्ता वीसरावा मांडी. आजे घणाने तो खबर पण नथी के आवा प्रकारनो उत्तम ग्रंथ विद्यमान छे. संस्कृतनो अभ्यास घटतो जवाने कारणे आवा संस्कृत महाकाव्यनुं वांचन करनारानी संख्या अल्प छे मोटे भागे आवा महाकाव्यादि ग्रंथोनो गुजराती भाषामा थयेल अनुवादोनो ज आशरो लेवाय छे. बीजी तरफ अन्य संस्कृत कथानकोनुं प्रकाशन थई रह्युं छे. परिणामे आजे पूर्वना महापुरुषो रचित मूल्यवान ग्रंथोनुं विस्मरण थवा मांड्युं छे. आवा समयमां आपणा पूर्वजो, तेओ रचित ग्रंथो तेमज संस्कृतभाषानुं माहात्म्य जळवाय रहे तेने माटे आ ग्रंथ बहु ज उपयोगी छे. बहु कठिन नही तेमज साव सामान्य पण नही तेवा शब्दप्रयोग, धातुप्रयोग, वाक्यप्रयोगथी युक्त आ ग्रंथ संस्कृतना प्राथमिक अभ्यासु जीवो माटे बहु ज लाभदायी बनी शके तेम छे. तेथी विद्यागुरु
SR No.009891
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitrasya Gadyatmaka Saroddhar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhankarsuri, Dharmkirtivijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages89
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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