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११. इन्द्र नामक विद्याधरराजा ८ दिक्पालोनी स्थापना करे छे (अन्यत्र ४ नी वात छे). (पृ. १२०) १२. अंजनासुन्दरीने मुनि श्वापदोना भयथी रक्षण करवा माटे दिग्बंध आपे छे. (पृ. १३८) १३. हरिवंशनो विस्तार जय तथा ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती वच्चे थयो (अन्यत्र शीतलजिन तथा श्रेयांसजिननी वच्चे हरिवंशनी
उत्पत्ति थई तेवी वात छे.) (पृ. २३६) १४. मगधसुन्दरी - मगधश्री एम जरासन्धनी बे गणिकाओनी कथा. (पृ. २४४) १५. बलदेवपत्नी रोहिणीना सतीत्वनी परीक्षा अने ते स्थले रोहिणीक्षण नामक तीर्थ. (पृ. २९२) १६. कृष्णे कंसने बे पग द्वारा खेंची घसड्यो ते स्थान कंसकड्ढणी(कंसकर्षणी) तरीके मथुरामां प्रसिद्ध छे.
(पृ. ३००) १७. दमयन्तीना जीव कनकवतीने वसुदेव द्वारिकामांथी परणवा गया अने पाछा द्वारिकामां लावे छे. (अन्यत्र
द्वारिकास्थापन पहेलां ज विवाह थयो तेवी वात छे.) (पृ. ३२३) १८. कृष्ण-जरासन्धना युद्धमा ज्यां सैनिकोनां शिर कपाईने पड्यां ते स्थान सिरबलय तरीके प्रसिद्ध थयु. (पृ. ३४०) १९. वासुदेव द्वारा नारदने शौचविषयक पृच्छा अने तेना जवाब माटे नारदमुं सीमन्धर स्वामी तथा युग्मन्धर स्वामी
पासे जq. (पृ. ३४७) २०. महावीरस्वामी-कालीन धनंजय श्रेष्ठीनी कथा. (पृ. ३४८) २१. महावीरस्वामि-शिष्य धर्मघोष-धर्मयशः मुनिनी कथा. (पृ. ३४८) २२. नेमिनाथनी दीक्षाना वरघोडामां नेमिनाथ देवमायाथी जुदा जुदा गज-रथ-पालखीमां बेसेला देखाय छे.
(पृ.३५०) २३. कृष्ण वासुदेवने देव पासेथी रोगोपशमन करनारी भेरी मळे छे ते पहेला ज तेनी पासे सङ्ग्रामिका, अद्भुतिका,
कौमुदिका – एम त्रण भेरीओ छे. (पृ. ३५२) २४. दक्षिणमथुराथी पाण्डवो पाछा फरे छे त्यारे रस्तामां कलि साथे युद्ध थाय छे, अने कलिकालना ९ भावो जाणवा
मळे छे. (पृ. ३६७-३६८) २५. पाण्डववंशोत्पन्न अण्ण राजानी मति-सुमति कन्याओ उज्जयन्त-चैत्यना वन्दनार्थे समुद्रमार्गे आवे छे त्यारे
हाण तुटवाथी मृत्यु पामे छे - परन्तु मुत्य समये शद्धभावने लीधे केवलज्ञान पामी सिद्ध थाय छे. तेमनां शरीर जे स्थले (सोम-वेळा) आवी पडे छे ते स्थले सोमनाथ-प्रभास तीर्थनी उत्पत्ति थाय छे. (पृ. ३६८
३६९) केटलांक सन्दिग्ध स्थानो १. आदिनाथ भगवानना पूर्वभव सम्बद्ध महाबल राजाना भवमां तेमना पितानुं नाम शतबल अने पितामहर्नु नाम
अतिबल छे. (अन्यत्र ग्रन्थोमां विपर्यय छे.) (पृ. १३) । २. आदिनाथ भगवानना पूर्वभवसम्बद्ध वैद्यपुत्र-भवमां वैद्यपुत्रनुं नाम अभयघोष अने श्रेष्ठिपुत्रनुं नाम केशव छे.
(अन्यत्र ग्रन्थोमां विपर्यय छे.) (पृ. १७) आदिनाथ भगवानना जन्मोत्सव वखते ४ दिक्कुमारिका लोकमध्यमांथी आवे छे. (अहीं रुचकद्वीपना मध्यभागमांथी आवे छे एवं कहेवाने बदले रुचकप्रदेश = लोकमध्य एवो अर्थ करी दीधो जणाय छे.)