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प्रथम परिच्छेद ॥ पांचवीं पक्तिमें नष्ट स्थान में चारको लिखना चाहिये, चौथी पक्ति प्रक्षोंसे आक्रान्तं (१) नहीं है। इसलिये सर्वलघ पांच को आदिमें करके गिनने पर शन्य कोठक में स्थित पांच को ही चौथी पंक्तिमें नन्ट स्थान में लिखना चाहिये तथा तीसरी पंक्ति में पांच और चार यद्यपि लघ हैं तो भी पूर्व स्थापित होनेसे उनको (२) छोड़कर शेष त्रिक [३] लघु [४] को ही श्रादि में करके गिनने पर अक्षाक्रान्त कोष्ठक में एक स्थित है, अतः उसी को तीसरी पंक्तिमें नस्ट स्थान में रखना चाहिये, तथा दूसरी पंक्तिमें पूर्ववत् [५] पहिले स्थित पांच और चार को छोड़कर लपत्रिक को आदि में करके [६] गिन र अताक्रान्त [७] स्थान में द्विक [८] स्थित है. इसलिये उसमें [] उसीको[१०] नष्ट लिखना चाहिये, इसी प्रकार प्रथम पंक्ति में भी लपत्रिक को आदिमें करके गिननेपर अक्षाक्रान्त स्थानमें त्रिक स्थित है। इसलिये प्रथम पंक्तिमें उसीको[११] नष्ट जानना चाहिये, इस प्रकार ३२१५४ यह तीसवां भङ्ग हो गया। इसी प्रकार ज्येष्ठ ज्येष्ठ अङ्क को श्रादि में करके [१२] नीचे के कोष्ठक से गिननेपर भी ऐसा ही नष्टका स्वरूप प्रा जाता है, जैसे देखो ! अन्त्य पंक्तिमें सर्व ज्येष्ठ [१३] एक को आदिमें करके PR नीचेके कोष्ठ से गिननेपर अक्षाक्रान्त स्थानमें चार स्थित है, इसलिये उसमें [१५] उसीको [१६] नष्ट लिखना चाहिये, चौथी पंक्ति में पहिले पञ्चम [१७] पंक्तिमें स्थापित [१८] चार को टालकर [१८] नीचेके कोष्ठ से सर्व ज्येष्ठ एकको श्रादिमें करके गिनने पर अक्षाक्रान्त न होनेसे शभ्य कोष्ठकमें स्थित पांच को ही नष्ट स्थान में लिखना चाहिये, तीसरी पंक्तिमें उसी प्रकार गिनने पर अक्षाक्रान्त स्थानमें एक स्थित है। इसलिये उसीको वहां [२०] नट लिखना चाहिये, दूसरी पंक्तिले पहिले के समान पूर्व स्थापित [२१] होनेके कारण ज्येष्ठ भी एक को टाल कर शेष ज्येष्ठ द्विकको श्रादिमें करके बिनने पर अंताक्रान्त स्थानमें विक स्थित है। इसलिये उसीको [२२]
१-यक्त ॥२-पांच और चार को ॥ ३-तीन ॥ ४-छोटे ॥ ५-पहिले के समान ॥ ६-लघुत्रिक से लेकर ॥७-अक्षसे युक्त ॥ ८-दो ॥६-अक्षाक्रान्त स्थानमें ॥ १०-द्विक को ही ॥११- त्रिकको ही ॥१२-ज्येष्ठ ज्येष्ठ असे लेकर १३-सबसे बड़े ॥१४- एक से लेकर ॥१५- अक्षाकान्त स्थानमें ॥ १६-चार को ही ॥ १७- पांचवीं ॥ १८-रक्खे हुए ॥१६- छोड़कर ।२०- एक को ही ॥२१- पहिले रक्खे हुए ॥२२- द्विकको ही।
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