SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ . तात्पर्य यह है कि चौवीस धार ठहर कर इस समय पंक्ति में से उठ गया, अब पश्चानुपूर्वी के द्वारा उम से अगला अंक ४ नष्ट जानना चाहिये, तात्पर्य यह है कि इस समय है, इस लिये चार को मष्ट स्थान में पांचवीं पंक्ति में रखना चाहिये, अब शेष छः में चौथी पंक्ति वाले छ रूपपरिवर्तका भाग देने पर लब्धाङ्क, एक हुआ, शून्य शेष रहा, इसलिये लब्धाङ्क में से एक घटाया जाता है, अत: लब्ध के स्थान पर भी शन्य हो गया इसलिये चौथी पंक्ति में अबतक एक रूप भी नहीं गया है, इसलिये अन्तिम (१) पद पांच को ही नष्ट जानना चाहिये, शेष अङ्क एक दो और तीन उत्क्रम (२) से रखना चाहिये, जैसे ३२९५४ इस को तीसवां रूप जानना चाहिये। अब दूसरा उदाहरण दिया जाता है—देखो ! चौवीसवां सूप नष्ट है वेह कैसा है ? यह पूछने पर चौवीस में अन्त्य (३) परिवर्त २४ का भाग देने पर लब्धाङ्क एक प्राया शेष शून्य रहा, इसलिये पहिले कही हुई युक्ति से शून्य के शेष रहने से लब्धाङ्क में से एक घटा दिया तो लब्ध के स्थान में भी शन्य हो गया, इसलिये पांचवीं पंक्ति में अबतक एक भी सूप नहीं गया है इस लिये अन्तिम अंक पांच को ही रखना चाहिये, तथा शेष अङ्क एक दो तीन और चार को उस्क्रम से रखना चाहिये जैसे ४३२१५ यह चौबीसवां सूप है। अब तीसरा उदाहरण दिया जाता है-देखो ! सत्तानवे का सूप नष्ट है, इसलिये सत्तानवे में जो अन्त्य परिवर्त २४ है उसका भाग देने पर लब्धाङ्क चार पाये, तथा एक शेष रहा, इस लिये पांचवीं पंक्ति में अन्त्य आदि (8) चार अंकों को (१) गत जानना चाहिये, उनसे अगले एक को नष्ट स्थान में लिखना चाहिये तथा एक शेष रहने से शेष अंकों को कम से लिखना चाहिये, जैसे २३४५१ यह सत्तामवे का रूप है। अब चौथा उदा. हरण दिया जाता है-जैसे देखो ! पचासवां रूप नष्ट है, इस लिये पचास पंक्ति में अन्त्य परिवर्त २४ का भाग देने पर लब्ध दो भाये, इसलिये अन्त्य पंक्ति में अन्त्य से लेकर दो अंक (६) गये, उनसे अगले त्रिक को नष्ट स्थान में लिखना चाहिये, अब जो शेष द्विक है उस में चौथी पंक्ति के परिवर्त छ: का भाग देने पर कुछ भी लब्ध नहीं होता है, (७) इसलिये यहां चौथी पाकि पिछले । २क्रमको छोड़कर । ३-पिछले । ४-अन्त्य से लेकर ॥ ५-पांच, चार, तीन दो, इन अटोंफो ॥६-पांच और चार ये दो अङ्क ॥ ७-क्योंकि दो में छः का भाग ही नहीं लग सकता है ।। Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy