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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ .
तीन लाख बासठ सहम आठसौ अस्सी, नवकार के नौ पदों के मंगों की सम संख्या होती है ॥ ५ ॥
स्वोपज्ञवृति--एताएवभंगसंख्यागाथामिराह,गाभावयंस्पहम् ।।४।५।
दीपिका-मंगों की इन्हीं ( पूर्वोक्त ) संख्याओं को तीन गाथाओं के द्वारा कहा है, ये तीनों गाथा स्पष्ट है ॥ ३ ॥ ४ ॥ ५ ॥
मूलम् तत्थ पहमाणु पुच्ची,
चरमा पच्छाणुपुब्धिया नेया॥ सेसा उ मज्झिमाश्रो,
अपाशुपुष्वीरो सव्वाश्रो॥६॥ संस्कृतम्-तत्र प्रश्वमानुपूर्वी
चरमा पश्चानुपूर्विका ज्ञेया॥ शेषास्तु मध्यमाः
अनानुपूर्व्यः सर्वाः ॥६॥ भाषार्थ-उन में से प्रथम (भंगसंख्या) आनुपूर्वी है, पिछली (भंगसंख्या) को पश्चानुपूर्वी जानना चाहिये, शेर्षे नो बीच की (भंगसंख्या) हैं वे सब अनानुपूर्वी हैं ॥ ६ ॥
स्वोपज्ञवृत्ति-एषाम्भंगानां नामान्याहःषष्ठी गाथा स्पेष्टा ॥ ६ ॥
अत्र पंचपँदीमाश्रित्य विंशत्युत्तरं शतं भंगसंख्यायंन्त्रकं लिख्यते यथा:
१-तीन गाभात्रों का अर्थ स्पष्ट है।। २-सव से पहिली जो भंगसंख्या है उसे आनुपूर्वी कहते हैं ।। ३-सब से अन्तिम ॥ ४-श्रादि और अन्त की भंगसंख्या को छोड़ कर ॥ ५-स्पष्टार्था ।। ६-पञ्चानाम्पदानां समाहारः पश्चपदी ताम् ।। ७-उद्दिश्य, अधिकृत्य ॥ ८-यन्त्रक कोष्टकम् ॥
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