________________
प्रथम परिच्छेद ॥
सत्त य सयाणि बीसा, छण्हं पणसहस्स चत्त सत्तरहं । चालीस सहस्स तिसया, वीसुत्तरा हुंति अट्टराई ॥४॥ लक्खतिगं बासही, सहस्स अट्ठ य सयाणि तह प्रसिई॥ नवकारनवपयाणं,
भंगयसंखा उ सध्या ॥५॥ संस्कृतम्-एकस्य एकमंगो
द्वयोद्वौं चैव त्रयाणां पर मंगाः॥ चतुर्विशातिश्च चतुर्णा विंशत्युत्तरशतञ्च पध्चानाम् ॥३॥ सप्त च शतानि विंशतिः पएणां पञ्च सहस्राणि चत्वारिंशत् सप्तानाम् ॥ चत्वारिंशत्सहस्राणि त्रीणि शतानि ॥ विंशत्युत्तराणि भवन्ति अष्टानाम् ॥ ४॥ लक्षत्रयं द्वाषष्टिः सहस्राणि अष्ट च शतानि तथा प्रशीतिः॥ नवकारनवपदानां
मंगकसंख्या तु सर्वापि ॥ ५॥ . भाषार्थ----एक का एक भंग होता है । दो के दो भंग होते हैं। तीन के छः भंग होते हैं। चार के चौवीस भंग होते हैं तथा पांच के एक सौ बीस मंग होते हैं ॥३॥
छः के सात सौ बीस भंग होते हैं। सात के पांच सहस्र चालीस भंग होते हैं तथा आठ के चालीस सहस्र तीन सौ बीस भंग होते हैं ॥ ४ ॥
१-मूले तुशब्दोऽपिशन्दार्थः ॥ २-पूर्व कही हुई गखों की भंगकसंख्या का ही अब कथन किया जाता है।
Aho! Shrutgyanam