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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥
पने अवान्तर भेदों में से किसी एक भेद विशेष का ही सर्वथा वाचक नहीं हो सकता है ( कि सम्पद् शब्द केवल श्राचार का ही वाचक हो, ऐसा नहीं होता है, इसी प्रकार से अन्य भेदों के विषय में भी जान लेना चाहिये ), अतः यह निश्चय हो गया कि सम्पद् का वाचना रूप अवान्तर भेद होने पर भी वह ( सम्पद् शब्द ) केवल वाचना का ही वाचक नहीं हो सकता है, अतः सम्पद् शब्द से वाचना का ग्रहण करना युक्ति सङ्गत (१) नहीं है ।
किञ्च -- यदि हम असम्भव को भी सम्भव मान थोड़ी देरके लिये यह मान भी लें कि सम्पद् शब्द वाचना का नाम है, तो भी उस वाचनाके लक्ष्य (२) से इस महामन्त्र में आठ सम्पदों का होना नहीं सिद्ध हो सकता है, क्योंकि वाचना जो है वह केवल प्राचार्य सम्बन्धिनी एक सम्पद है; उस स स्पद का इस महामन्त्र के साथ में ( कि जिसमें परमेष्ठियों को नमस्कार तथा उसके महत्व का वर्णन किया गया है ) किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं है, फिर आर्य सम्बन्धिनी सम्पद की एक प्रङ्गभूत वाचना की ओर लक्ष्य (३) देकर तथा वाचना शब्द का भ्रान्तित, (४) विश्रान्त पाठ, पाठच्छेद अथवा सहयुक्त वाक्यार्थ योजना रूप अर्थ मानकर इस महामन्त्र में आठ सम्पदों का मानना नितान्त (५) भ्रमास्पद (६) है ।
( ग ) यदि सम्पद् नाम सहयुक्त वाक्यार्थ योजना का मान कर (9) हीं उक्त महामन्त्र में वे लोग छाट सम्पद् मानते हैं तो आठवें और नवें पदके समान वे लोग छठे और सातवें पद की एक सम्पद् को क्यों नहीं मानते हैं, क्योंकि जैसे आठवें और नवें पदको सहयोग (c) की अपेक्षा सहयुक्त वाक्यार्थ योजना होती है ( अत एव उन्हों ने इन दोनों पदोंकी एक सम्पद् मानी है ) eet प्रकार छठे और सातवें पदकी भी सहयोग की अपेक्षा सहयुक्त वाक्यार्थ योजना होती है (c), अतः इन दोनों पदोंकी भी उन्हें भिन्न २ सम्पद् न मानकर (आठवें और नवें पदके अनुसार ) एक सम्पद् हो माननी चाहिये, ऐसा मानने पर उक्त महामन्त्र में आठ के स्थान में सात ही सम्पद् रह जायेंगी । (घ) यदि आठवें और नवें पदकी सह युक्त (१०) वाक्यार्थ योजना ( ११ )
१-युक्ति युक्त, युक्ति सिद्ध ॥ २-उद्देश्य ॥ ॥ ३-ध्यान ॥ ४-भ्रान्ति के कारण ॥ ५-अत्यन्त ॥ ६-भ्रमस्थान भ्रान्त विषय ॥ ७- जितने पाठ में वाक्य का अर्थ पूर्ण हो जावे उसका नाम सम्पद है इस बातको मानकर ॥ ८-साथ में सम्बन्ध ॥ - तात्पर्य यह हैं कि आठवें और नवें पदके समान छठ और सातवें पदका मिश्रित ही वाक्यार्थ होता है ॥ १०-साथ में जुड़ी हुई ॥ ११- वाक्य के अर्थ की लङ्गति ॥
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