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________________ पञ्चम परिच्छेद ॥ ( १९७) यस्मिन् स नवकारः अर्यात् जिसके नौओं ( पदों ) में "कार" अर्थात् क्रि. यायें हैं उसको नवकार कहते हैं, अथवा ( नौ पदोंके कारण) जिसमें नौ ( गुणनरूप ) क्रियायें हैं उसे नवकार कहते हैं, इसी कारण से इस महा मन्त्रका नाम नवकार है। (प्रश्न ) छठा पद "एसो पञ्चणमोकारो” है, इस पद में “पञ्चणमो. कारो” ठीक है। पाप ने तो "एसो पचणमाकारो” ऐसा पद लिखा है! प. रन्तु बहुत से स्थलों में “एसो पञ्चणमुक्कारो” ऐसा भी पद देखा जाता है? (उत्तर)-संस्कृत का जो नमस्कार शब्द है उस का प्राकृत में “नमस्कार परस्परे द्वितीयस्य" इस सूत्र से “णमेाकारो" पद बनता है, अब जो पाहीं २ “णमुक्कारो” ऐसा पाठ दीख पड़ता है उस की सिद्धि इस प्रकार से हो सकती है कि -"हस्वः संयोगे? इस सूत्र से यथा दर्शन (१) ओकार के स्थान में उकार आदेश करके “णामुक्कार" पद बन सकता है, इसीलिये कदाचित् वह कहीं २ देखने में आता है तथा इस ग्रन्थ के कर्त्ताने भी प्रारम्भ में “परमिढि णमुक्कार" ऐसा पाठ लिखा है, अर्थात् नमस्कार शब्द का पर्याय प्राकृत में “णमुक्कार" शब्द लिखा है, परन्तु हमारी सम्मति में “णमो. कारो" ही ठीक है; क्योकि विधान सामर्थ्य से (२) यहां पर प्रकारके स्थान में उकारादेश नहीं होगा, जैसा कि परस्पर शब्द का प्राकृत में “परोप्पर” शब्द बनता है; उस में विधान सामर्थ्य से ओकार के स्थान में उकार आदेश नहीं होता है, अर्थात् “परुप्पर” शब्द कहीं भी नहीं देखा जाता है, किचहृशीकेष जी ने भी स्वप्राकृत व्याकरण में नमस्कार का पर्याय वाचक प्राकृत पद “मोक्कारो” ही लिखा है (३)। (प्रश्न )-"एसो पञ्चणमोकारो” इस पद का क्या अर्थ है ? ( उत्तर )-उक्त पद का अर्थ यह है कि-"यह पांचों को नमस्कार" क्योंकि “पञ्चानां सम्बन्धे पञ्चभ्यो वा नमस्कारः इति पञ्चनमस्कारः” इस प्रकार तत्पुरुष समास होता है, किन्तु यदि कोई उक्त पदका यह अर्थ करे ५-दृष्ट प्रयोग के अनुसार ॥२-ओकार का विधान ( कथन ) किया गया है इसलिये ॥३-देखो उक्त ग्रन्थ का १२५ वां पृष्ठ इसके अतिरिक्त प्राकृतमञ्जरी (श्री मत्कात्यायनमुनिप्रणीत प्राकृतसूत्र वृत्ति ) में भी “नमस्कारः” पदका प्राकृत में "णमोक्कारा” ही लिखा है देखो उक्त ग्रन्थ का ५२ वां पृष्ठ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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