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________________ पञ्चम परिच्छेद ॥ लिये भगवान् जो देशना देते हैं वह मालकोश रागमें देते हैं और वह माल कोश राग जिस समय देशना में पालाप करता है उस समय भगवान के दोनों तरफ स्थित देवगण मनोहर वेण (१) और वीणा (२) प्रादि शब्द के द्वारा उस वाणी को अधिक मनोहर कर देते हैं। ____४-चामर-तन्तुसमूह से युक्त कदली स्तम्भः (३) के समान जिन के सुवर्ण निर्मित (४) दण्ड में रत्नों की किरणें प्रदीप्त हो रही हैं और उनसे इन्द्र. धनुष के समान नाभा (५) का विस्तार (६) होता है। इस प्रकार के श्वेत चामरों से देवगण समवसरण में भगवान का वीजन करते हैं। ५-पासन-अनेक रत्नों से. विराजमान (७', सुवर्णमय (८), मेरु शिखर के समान ऊंचा, कर्मरूप शत्र समूह को भय दिखलाने वाले साक्षात् सिंह के समान, सुवर्णमय सिंहासन को देवजन बनाते हैं, उस पर विराज. कर भगवान् देशना (९) देते हैं। ६-भामगडल-भगवान् के मस्तक के पृष्ठ भाग में शरद् ऋतु के सूर्य की किरणों के समान अत्यन्त प्रदीप्त (१०) कान्तिमण्डल (१९) देवकृत (१२) र. हता है। यदि यह [ कान्तिमण्डल ] न हो, तो भगवान् के मुख के सामने देखा भी न जा सके। 9-दुन्दुभि-अपने भाद्वार शबद से विश्वरूप विवर (१२) को पूर्ण करने वाली भेरी यह शब्द करती है कि-“हे मानण्यो ! तुम प्रमाद को छोड़ कर जिनेश्वर का सेवन करो, ये जिनेश्वर मुक्तिरूप: नगरी में पहुंचाने के लिये सार्थवाह (१३) के समान हैं। -छत्र-भगवान्के त्रिभवन परमेश्वरत्व (१४) को सूचित करने वाले शर. त्काल के चन्द्र तथा मुचुकुन्द के समान उज्ज्वल मोतियों की मालाओं से विराजमान, तीन छत्र भगवान् के मस्तक पर छाया करते हैं। ये पाठ प्रातिहाय रूप पाट गुण भगवान के कहे गये; अब मूलातिश १-बांसुरी ॥ २-सितार ।। ३-केले का थम्भा ॥ ४-सुवर्ण से बने हुए ॥. ५-कान्ति, छवि ।। ६-फैलाव ।७-शोभित । ८-सुवर्णका बना हुआ।। -धर्मोपदेश ।। १०-दीप्ति से युक्त ।। ११-प्रकाशमण्डल ।। १२-देवों का बनाया हुआ ॥ १३-छिद्र ।। १४-जनसमूह को आश्रय दान पूर्वक साथ में लेकर अभीष्ट स्थान में पहुंचाने वाला ।। १५-तीनों लोकों के परमेश्वर होने । Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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