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________________ चतुर्थ परिच्छेद ॥ (१४७) मङ्गलं उपरि वनशिला, यह इन्द्रकवच है, उपाध्याय आदि को अपनी रक्षा के लिये इसका स्मरण करना चाहिये (१) ५-ओं णमो अरिहंताणं (२), ओं णमो सिद्धाणं, प्रों णमो पायरियाणं, ओं णमो उवज्झायाणं, त्रों णमो लोए सव्वसाहूणं, ओं णमो नाणाय, ओं णमो दसणाय, ओं णमो चारित्ताय (३), ओं णमो तवाय (४), प्रों ही त्रैलोक्यवशं ( शी (५)) करी ही स्वाहा ॥ यह मन्त्र सर्व कार्यों को सिद्ध करता है, स्वच्छ जलसे छींटे देना तथा उसका पान करना चाहिये, चक्षु में लवण रस के पड़ने से पीड़ा होने पर अथवा शिरो व्यथा तथा अर्ध शिरोव्यथा आदि कार्यों में ( इसका ) उपयोग करना चाहिये (६) ॥ ६-"नों णमो (७) लोए सव्वसाहूणं” इत्यादि प्रति लोमके (८) द्वारा ह्रीं पूर्वक पांच पदोंसे पट (९) आदि में ग्रन्थि बांधकर तथा १०८ वार जप करके १-पूर्वोक्त “नवकारमन्त्रसमह" पुस्तक में इस मन्त्र के विषय में लिखा है कि-"जब कभी कोई अकस्मात् उपद्रब आजावे अर्थात् खाते, पीते, यात्रा में जाते आते, अथवा सोते उठते, कोई आपत्ति आजावे; तव शीघ्र ही इस मन्त्र का मन में वार वार स्मरण करने से उपद्रव शान्त हो जाता है तथा अपनी रक्षा होती है ॥२पूर्वोक्त पुस्तक में “अरुहन्ताणं” ऐसा पाठ है ॥ ३-पूर्वोक्त पुस्तक में “चरित्ताय" ऐसा पाठ है, ऐसा पाठ होने पर भी अर्थ में कोई भेद नहीं होता है ॥ ४-पूर्वोक्त पु. स्तक में “ओं णमो तवाय" यह पाठ नहीं है ॥ ५-दोनों ही प्रकार के पाठों में अर्थ में कोई भेद नहीं आता है, किञ्च-पूर्वोक्त “नवकारमन्त्रसजाह" पुस्तक में “त्रैलोक्यवश्यकुरु" ऐसा पाठ है ॥ ६-मन्त्र के उपयोग, फल और विधि का जो यहां पर वर्णन किया गया है यह सब विषय पूर्वोक्त " नवकारमन्त्रसङ्ग्रह” पुस्तक में नहीं है, किन्तु उक्त पुस्तकमें इस प्रकार विधि का वर्णन किया गया है कि-"एक वाटकी; प्याली; अथवा लोटीमें स्वच्छ जलको भरकर तथा २१ वार इस मन्त्र को पढ़कर फेंक देकर उस जलको मन्त्रित कर लेवे तथा जिस मनुष्य के आधाशीसी हो, अथवा मस्तक में दर्द हो उस को पिलाने से पीड़ा शान्त हो जाती है ॥ ७-पूर्वोक्त “नवकारमन्त्रस. मह" में-“ओं णमो लोए सव्य साहूणं, ओं णमो उवज्झायाण, ओं णमो आयरियाणं, ओं णमो सिद्धाणं अरुहन्ताण, ऐं ह्रीं” ऐसा गन्त्र लिखा है ॥ ८-पश्चानुनी ॥ ६-वस्त्र ।। Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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