SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय परिच्छेद ॥ तथा “ह” अर्थात् जल विद्यमान है, “एकार्थञ्चानेकं च” इस सूत्र होता है, आसन पर बैठी हुई लक्ष्मी अपने आप को इस प्रकार से लक्ष्मी के अभिषेक [१] को स्वप्न में का वर्णन नैषध के आदि काव्य में किया गया है बुधाः सुधामपि " इस वाक्य में सुधा शब्द से वसुधा हुए महाकवि टीकाकार ने वरांच्युति को दिखलाया है ] ॥ ( ८१ ) से समास जल से सींचती है, देखा, [ वर्णच्युति कि- " तथाद्रियन्ते न की व्याख्या करते ८३ - गज, (२) वृषभ, (३) सिंह, पद्मासन, (४) स्त्रक, (५) चन्द्र, (६) सपन, (७) पलाका, कुम्भ, (c) अम्भोजसर, (९) अम्बुधि (१०) विमान, रत्नोच्चय (११) और अग्नि, ये चौदह स्वप्नों के नाम हैं, अर्थात् ये चौदह स्वप्न हैं, इनमें चार की व्याख्या कर दी है। अब स्त्रक् की व्याख्या की जाती है- "ह" नाम जल का है, उससे जो " तन्यते” अर्थात् विस्तृत होता है, उसे “हन्त” कहते हैं, अर्थात् “हन्त" नाम कमल का है, ( कर्मकर्ता अर्थ में ड प्रत्यय होता है ) कमल के उपलक्षण होनेसे अन्य भी पुष्पों को जानना चाहिये, ( श्रासिक् (१२) धातु उपवेशन अर्थ में है, 'प्रासनम्" इस व्युत्पत्ति के करने पर “प्रास्” शब्द बनता है, कमलादि पुष्पों का “स्” अर्थात् स्थान, इस प्रकार का जो वन्ध अर्थात् स्त्रग्रूप (१३) रचना विशेष है उसे हन्तान कहते हैं, ( प्राकृत में लिङ्ग तन्त्र (१४) होता है अतः नपुंसक लिंग हो जाता है ), वह कैमा है कि “नमोनरि" ( रेफ और लकार की एकता होती है ) “नम” अर्थात् मह वीभाव, “चारतः” अर्थात् परतः भ्रमण, उससे “ऊ” अर्थात् शोभा देते हुए भौंरे जिसमें विद्यमान हैं, ( शोभा श्रर्थवाले छाव् धातु से क्विप् प्रत्यय करने पर ऊ शब्द बनता है ) ॥ Aho! Shrutgyanam ८४–“म” अर्थात् चन्द्रमा है, वह कैसा है कि ( नसि धातु कौटिल्य अर्थ में है, उससे “नसते" इस व्युत्पत्ति के करने पर नस् शब्द बनता है, क्किप् प्रत्यय के करने पर “ अभ्वादेः " इस सूत्र से दीर्घ नहीं होता है, क्योंकि भ्वादिगण में इसका पाठ है ) जो न अर्थात् कुटिल नहीं है, अर्थात् पूर्ण है, १-स्नान ॥ २-हाथी ॥ ३- वैल ॥ ४-कमलासन ॥ ५- ताला ६- चन्द्रमा ७ - सूर्य प्र ८-घड़ा ॥ ६–क्रमलसरोवर १० - समुद्र ॥ ११ - रत्नराशि १२- अन्यत्र धातु पाठ में आस् धातु है ॥ १३-माला रूप ॥ १४- अस्वतन्त्र, अनियत ॥ ११
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy