________________
(६६)
श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥
उससे "उत" अर्थात प्रबल वा उद्धत “अलि” अर्थात् भ्रमर जहां है, ऐसा वह कमल है, चित्र (१) होने के कारण अनुस्वार का प्रभाव हो गया तथा उसी से रेफ और लकार की एकता (२) भी होती है ) ॥
9-नमो अरि"-"नम” अर्थात नमत ( कृश ) जो उदर है उसे "नमोदर" कड़ते हैं, जिसका नमोदर है उसको " नमोदरि ” कहते हैं, अ. र्थात बुभक्षा से युक्त उदर बाला भिक्षाचरों का वृन्द है, वह कैसा है कि"हन्ताणम्"-"हन्त" शब्द भिक्षा का वाचक है, क्योंकि देशी भाषा में "हन्त” नाम भिक्षा का है, उस ( भिक्षा ) के द्वारा "मान” अर्थात् जीवन जिसका हो रहा है ॥
-"मो अ" शब्द से प्रश्रवण का ग्रहण होता है, जैसा कि कहा है कि "भणहारो मोत्र निंबाई" प्रश्रावण का जो "लिह" अर्थात् पानकर्ता है (लिहीक धातु अस्वादन अर्थ में है) इस प्रकार भी कष्ट कारी उस मनुष्य का " त्राण " अर्थात् शरण नहीं हो सकता है, ज्ञान के विना " यह वाक्य उपस्कार रूप जानना चाहिये, क्योंकि यह न्याय है कि-सूत्रों में उपस्कार रहता है।
e-"मौकलि" नाम वायस का है, उसका जो हनन करने वाला अर्थात् घातक है उसका "पान" अर्थात् जीवन नहीं हो सकता है. लोक में यह बात प्रसिद्ध है कि-वायस का खाने वाला चिरजीवी होता है, उस वि. षय में यह अर्थ (मत) उचित नहीं है अर्थात् उसका हनन करने पर भी अधिक जीवन नहीं होता है।
१०-"हन्ताणं" "भ” नाम नक्षत्रोंका है, उनका जिससे "त्राणा,,अर्थात् रक्षण होता है, अर्थात् सब नक्षत्रों का रक्षक जो चन्द्रमा है उसको देखो, (यहां पर “ पश्य " इस क्रिया का अध्याहार होता है ) वह चन्द्र कैसा
कि " नमोदारी " "है, न" नाम बुद्धि का है तथा "मोद" हर्षको कहते हैं, तथा "भार" प्रापण को कहते हैं, पार जिस में विद्यमान हो उसको "प्रारी" कहते हैं, वह चन्द्र बुद्धि और मोद का प्रारी है, क्योंकि शुभचन्द्र में शुभ बुद्धि तथा हर्ष की प्राप्ति होती है, ( "प्रारि” इस पद में अनुस्वार का न होना दोष के लिये नहीं है, क्योंकि सूत्र विचित्र होते हैं, "ख घ च
१-सूत्र विचित्र रूप होते हैं इस कारण ॥२-एकत्त्व ॥
Aho ! Shrutgyanam