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जैन साहित्य संशोधक.
भो णिसुणि णण्ण कुलकमल सूर । सुरसिहारे धीर पडिवण्ण सूर॥ जिण भणिउं अणंताणत गयणु। तहो मज्झे परिठिउ तिविहु भुअणु। पहिलउ मल्लय संकासु दिछ। वीयउ कुलिसोवमु रिसिहि सिट्ठ॥ तइयउ मुइंद साण्णहु कहति । अरहंत अरुह भणु किं रहंति । तह लोकु कमलरुह हरि हरिहिं ण धरिउ ण किउ ण णिडियउ । तहिं वहु दीवोवहि मंडियउ । मज्झिउ भुअणु परिट्ठियउ॥ इय णाय कुमार चारु चरिए नन्ननामंकिए महाकइ पुप्फयंत विरइए महाकल्वे जयंधर-विवाहकल्याण वण्णणो नाम पढमो परिच्छेओ सम्म तो ॥२॥
(नागकुमार चरित का अंतिम भाग।) गोत्तम गणहर एवं सिट्ठउ । सूरिपरंपराए उवहट्टउ । णायकुमारचरित्तु पयासिउ । इयसिरिपंचमि फल मई भासिउ ॥१॥ सो णंदउ जो पढइ पढावइ । सो णंदउ जो लिहइ लिहावइ । सो गंदउ जो विवरि विदावइ । सो गंदउ जो भावे भावइ ॥२॥ णंदउ सम्मइ सासणु सम्मइ । णंदउ पयसुह णंदउ नरवह। चिंतिउ चिंतिउ वरिसउ पाउसु । णंदउ णण्णु होउ दीहाउसु ॥ ३ ॥ णण्ण हो संभवंत सुपविसई । णिम्मल देसण णाण चरित्तई। णण्णहो होउ पंच कल्लाणई। रोय-सोय-खयकरण विहाणइं ॥४॥ णण्णहो जसु भुअणत्तए विलसउ । णण्णहो घरे वसुहार पवरिसउ । सिवभत्ताइमि जिणसण्णासे । बे वि मयाइंदुरिय णिण्णासें ॥५॥ बंभणाई कासवरिस गोत्तई। गुरुघयणामय पूरिय सोत्तई ।। मुद्धाएवी केसव णामई । महु पियराइं होतु सुहधामइं ॥६॥ संप्पजउ जिण भावे लइयहो । रयणत्तय विसुद्धि दंगइयहो ।
मझु समाहि वोहि संपज्जउ । मझु विमलु केवलु उप्पज्जउ ॥ ७॥ पत्ता । णण्णहो मझु वि दय करउ । पुप्फयंत जिणणाहपियारी ।
खमउ असस वि दुब्वयण । वसउ वयण सुयदेवि भडारी ॥८॥ सहतुंग भवण वावार भार णिव्वहण वीर धवलस्स। कॉडेल्ल गोत्त नहससहरक्स पयइए सोमस्स ॥९॥ कुंदव्वागब्भसमुव्यवस्ल सिरि भरहभद्द तणयस्त । जस पसर भरिय भुअणोयरस्ल जिणचरण कमल भसलस्ल ॥ १० ॥ अणवरय रइय वरजिणहरस्स जिण भवण प्रयणिरयस्स ॥ जिण सासणायमुद्धारणस्स मुाणादेण्णदाणस्स ॥१२॥ कलिमलकलंक परिवज्जियस्स जियदविहवइरिणियरस्ल । कारुण्णकंद णव जलहरस्स दीणयण सरणस्स ॥१२॥ णिवलच्छी कीला सरवरस्त वापसरि णिवासस्स। णिस्सेस विउस विज्जाविणोय णियरस्स सुद्ध हिययस्स ॥१३।। णण्णस्स पत्थणाए कव्व पिसल्लेण पहसिय मुहेण । णाय कुमार चरित्तं रइयं सिारपुष्फयंतेण ॥ १४ ॥
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