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अंक ३]
महाकवि पुष्पदन्त के समय पर विचार,
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कृष्णराज द्वितीय के समय में मान्यखेट पुगट्टी और जलाई गई थी, पर किसी ‘धारानाथ' के द्वारा नहीं, वेंगी के चालुक्यवंशी राजा ने उसे लटा था । देखना चाहिये कि क्या कभी किसी धारा के राजा द्वारा भी मान्यस्वेट लगा गया है । धनपाल कवि अपने ‘पाइयलच्छी नाम माला' नामक कोष के अंत में, श्लाक २७६ आदि में लिखता है कि 'विक्रम संवत् १०२९. में जब मालवा वालों के द्वारा मान्यखेट लूटा गया था तब धारा नगरी निवासी धनपाल कविने अपनी बहिन सुन्दरा के लिये यह पुस्तक बनाई। इस उल्लेख से हमें मान्यखेट पर आक्रमण करनेवाले राजा का नाम तो विदेत नहीं हुआ, पर इतना पता चल गया कि वि० सं० १०२९ (शक सं. ८९४) के लगभग धारा वालों ने मान्यखेट को लूटा था । खोज करना चाहिये। शायद इस विषय पर कहीं से कुछ और प्रकाश पड़े । ग्वालियर के 'उदयपूर' नामक स्थान से एक शिलालेख मिला है, जिस में मालवा के परमारवंशी राजाओं की प्रशस्ति दी हुई है। इस प्रशस्ति का बारहवाँ पद्य यह है:
तस्माद् ( वैरिसिंहात् ) अभूदरिनरेश्वर-संघ-सेवा
गर्जगजेन्द्र-रव-सुन्दर-तूर्य-नादः । श्रीहर्षदेव इति खोटिगदेव-लक्ष्मी
जग्राह यो युधि नगाद-सम-प्रतापः॥ 'खोट्टेगदेव' कृष्णराज तृतीय के चचेरे भाई थे जो उन के पीछे मान्यखेट के सिंहासन पर भारुढ हुए। उक्त पद्य से हमें दो बातें नई विदित हुई। एक तो वही कि जिस की हम रु थे। अर्थात् मान्यखट की लटमार करानेवाले 'धारानाथ' का नाम । और दूसरी यह कि उस लूटमार के समय मान्यखेट के स्वामी खोट्टिनदेव थे। वैरिसिंह के पुत्र श्रीहर्षदेव का नाम 'नव साहसांकचरित' में श्रीहर्ष' या 'सीयक,' तिल कमंजरी में हर्ष और सीयक व प्रबन्धचिन्तामणि में श्रीहर्ष, सिंहभट और 'सिंहदन्त ' पाया जाता है । इस प्रकार ‘पाइयलच्छी नाममाला''और उदयपूर प्रशस्ति से यह सिद्ध हुआ कि वि० सं० १०२९ लगभग जब सीयक ‘श्रीहर्ष' द्वारा मान्यखेट लूटा गया था उस समय कृष्णराज तृतीय की मृत्यु हो चुकी थी और उन का उत्तराधिकारी खोट्टिगदेव वहां के सिंहासन पर था। ___ अब इससे आगे बढ़ने से पूर्व हमें यहां तक की छानबीन को पुनः दृष्टि गोचर कर लेना चाहियेः
१. पुष्पदन्तने अकलंक, वीरसेन और जिनलेन का उल्लेख किया है। इससे उनका काव्यरचना-काल शक सं० ७.९ से पीछे होना चाहिये।
२. पुष्पदन्तने अपने समकालीन मान्यखेट नरेश का 'वल्लभराय' नाम से उल्लेख किया है, जिसपर 'कृष्णराज' टिप्पण पाया जाता है । मान्यखेट के सभी राष्ट्रकूट वंशी राजाओं की 'वल्लभराय' उपाधि थी, उनमें कृष्णराज नाम के दो राजा हुए हैं।
३. पुष्पदन्तने अपने समय के मान्यखेट नरेश द्वारा 'चोड' राजा के मारे जाने का उल्लेख किया है। कृष्णराज तृतीयने शक सं. ५७१ में चोड़ राजा से युद्ध किया था और वहां के राजा की समरभूमि में हो मृत्यु हुई थी।
१६ विकमकालस्सगए अउणत्तीसुत्तरे सहस्सम्मि । मालवनरिन्द धाडिए लूडीए मन्नखेडम्मि-॥ इत्यादि 17. Epigraphia Indioa Vol I. p. 226, १८ 'भारत के प्राचीन राजवंश' भाग १,पृ. ९२
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