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सिरि-जिणभद्द - खमासमण- विरइओ
३. जन्तिय- मेन्तं कालं; ४. तवसा उ जहन्नएण छम्मासा । संवच्छरमुक्कासं आसाई जो जिणाईणं ॥ ९१ ॥ वासं बारस वासा पडिलेवी, कारणे य सव्वो वि ।
थोवं थोवतरं वा वहेज्ज, मुच्चेज्ज वा सव्वं ॥ ९२ ॥ वन्द न य वन्दिज्जर, परिहार- तवं सुदुच्चरं चरइ ।
संवालो से कप्पर, ना'लवणाईणि सेसाण ॥ ९३ ॥ १० तित्थगर पवयण सुयं आयरियं गणहरं महिय ।
आसायन्तो बहुसो आभिणिवेसेण पारंची ॥ ९४ ॥ जो य स-लिंगे दुट्ठो कसाय-लिंगेहि राय वहओ य ।
रायग्गमहिसि - पडिसेवओ य बहुसो पगासो य ॥ ९५ ॥ थीद्धि-महादोसो अन्नो' नासेवणापसत्तो य ।
रिमाणावत्तिसु बहुसो य पसजए जो उ ॥ ९६ ॥ सो कीरह पारवी लिंगओ १. खेत्त २. कालओ ३. तवओ ४ . । १. संपागड- पाडसेवी लिंगाओ थीणगिखी य ॥ ९७ ॥ २. वसहि-निवेसण वाडग साहि निओय पुर देस रजाओ ।
खेत्ताओ पारची कुल-गण-संघा' लयाओ वा ॥ ९८ ॥ जत्थु 'पन्नो दोसो उप्पज्जिस्सह य जत्थ नाऊणं ।
तत्तो तत्तो कीर खेत्ताओ खेत्त-पारची ॥ ९९ ॥ ३. जत्तिय- मेत्तं कालं; ४. तवसा पारश्चियस्स उ स एव ।
कालो दु-विकप्पस्स वि अणवट्टप्पस्स जो मिहिओ ॥ १०० ॥ पगागी खेप्त बर्हि कुणइ तवं सु-विउलं महासत्तों ।
अवलोयणमायरिओ पइ-दिणमेगो कुणइ तस्स ॥ १०१ ॥
अवटुप्पो तवा तव-पारची य दो वि विच्छिन्ना ।
चोद्दस पुव्वधरम्मी, धरन्ति सेसा सया कालं ॥ १०२ ॥ इस एस जीयकप्पो समासओ सुविहियाणुकम्पाए ।
कहिओ, देओ सो पुण पत्तेसु परिच्छिय मुणेसु ॥ १०३ ॥
असेल
गाथा ९१-१०३.
॥ इय सिरि-जिणभद्द - खमासमण विरइओ जीयव्यवहार- कप्पो समतो ॥
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