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जैन साहित्य संशोधक
[ खंड २
resh नीतिसारके बाद जहाँ तक हम जानते हैं, यह नीतिवाक्यामृत ग्रन्थ ही ऐसा बना है, जो उक्त दोनों प्रन्थोकी श्रेणी में रक्खा जा सकता है और जिसमें शुद्ध राजनीतिक चची की गई है। इसका अध्ययन भी कौटिलीय अर्थशास्त्र समझने में बड़ी भारी सहायता देता है।
नीतिवाक्यामृतके कतीने भी अपने द्वितीय ग्रन्थ ( यशस्तिलक ) में गुरु, शुक्र, विशालाक्ष, भारद्वाजके नीतिशास्त्रोका उल्लेख किया है । मनुके भी बीसों श्लोकोको उद्धृत किया है । नीतिवाक्यामृतमें विष्णुगुप्त या चाणक्यका और उनके अर्थशास्त्रका उलेख हूं । बृहस्पति, शुक्र, भारद्वाज, आदिके अभिप्रायोको भी उन्होंने नीतिवाक्यामृतमें संग्रह किया है जिसका स्पष्टीकरण नीतीवाक्यामृतकी इस संस्कृत टीकासे होता है। स्मृतिकारोंसे भी वे अच्छी तरह परिचित मालूम होते हैं । इससे हम कह सकते हैं कि नीतीवाक्यामृतके कर्ता पूर्वोक्त राजनीतिके साहित्य से यथेष्ट परिचित थे । बहुत संभव है कि उनके समय में उक्त सबका सब साहित्य नहीं तो उसका अधिकांश उपलब्ध होगा । कमसे कम पूर्व आचायोंके प्रन्थोंके सार या संग्रह आदि अवश्य मिलते होंगे ।
इन सब बातोंसे और नोतिवाक्यामृतको अच्छी तरह पढ़ने से हम इस परिणाम पर पहुंचते है कि नीतिवाक्यामृत प्राचीन नीतिसाहित्यका सारभूत अमृत है । दूसरे शब्दों में यह उन सबके आधारसे और कविका विलक्षण प्रतिभासे प्रसूत हुआ संग्रह प्रन्थ है। जिस तरह कामन्दकने चाणक्य के अर्थशास्त्र के आधार से संक्षपम अपने नातिसारका निर्माण किया है, उसी प्रकार सोमदेवसूरिने उनके समयमे जितना नीतिसाहित्य प्राप्त था उसके आधारसे यह नीतिवाक्यामृत निर्माण किया है। दोनों में अन्तर यह है कि नांतिसार श्लोकबद्ध है और केवल अर्थशास्त्र के आधार से लिखा गया है, परन्तु नांतिवाक्यामृत गद्यमें है और अनेकानेक प्रन्थोंके आधारसे निर्माण हुआ है, यद्यपि अर्थशास्त्री भी इसमें यथेष्ट सहायता ली गई है।
कौटिलीय अर्थशास्त्र की भूमिकामें श्रीयुत शामशास्त्रांने लिखा है कि, " यश्च यशोधरमहाराजसमकालेन सोमदेवसूरिणा नीतिवाक्यामृतं नाम नीतिशास्त्रं विरचितं तदपि कामन्दकीयमेिव कौटिलीयाथशास्त्रादेव संक्षिप्य संगृहीतमिति तद्ग्रन्थपदवाक्यशैलीपरीक्षायां निस्संशयं ज्ञायते ।” अर्थात् यशोधर महाराजके समकालिक सोमदेवसूरिने जो ' नीतिवाक्यामृत' नामका प्रन्थ लिखा है उसके पद और वाक्योंकी शैलीकी परीक्षासे यह निस्सन्देह कहा जा सकता है कि वह भी कामन्दकके नीतिसारके समान कौटिलीय अर्थशास्त्र से ही संक्षिप्त करके लिखा गया है *" परन्तु हमारी समझमें न्यायादवसरमलभमानस्य चिरसेवकसमाजस्य विज्ञप्तय इव नर्मसचिवोक्तयः प्रतिपन्न कामचारव्यवहारेषु स्वैर विहारेषु मम गुरुशुकविशालाक्षपरीक्षितपराशर भीमभीष्म भारद्वाजादिप्रणीतनीतिशास्त्रश्रवणसनाथं श्रुतपथमभजन्त ।"-- यशस्तिलकचम्पू, आश्वास २, पृ० २३६ ।
+ " दूषितोऽपि चरेद्धर्म यत्र तत्राश्रमे रतः । समं सर्वेषु भूतेषु न लिङ्गं धर्मकारणम् ॥
इति कथमिदमाह वैवस्वतो मनुः । " - यशस्तिलक आ० ४, पृष्ठ १०० । यह श्लोक मनुस्मृति अ० ६ का ६६ व श्लोक है। इसके सिवाय यशस्तिलक आश्वास ४, पृ० ९० – ९१ – ११६ ( प्रोक्षितं भक्षयेत् ), ११७ ( क्रीत्वा स्वयं ), १२७ ( सभी श्लोक ), १४९ ( सभी श्लोक ), २८७ ( अधीत्य ) के श्लोक भी मनुस्मृति में ज्योंके त्यों मिलते हैं । यद्यपि वहाँ यह नहीं लिखा है कि ये मनुके हैं। ' उक्तं च ' रूपमें ही दिये हैं ।
x नीतिवाक्यामृत पृष्ठ • ३६ सूत्र ९, पृ० १०७ सूत्र ४, पृ० १७१ सूत्र १४ आदि ।
+ “विप्रकीतावूढापि पुनर्विवाहदीक्षामईतीति स्मृतिकारा: " नी०वा० पृ० ३७७, सू०२७; "श्रुतेः स्मृतेर्बाह्यबाह्यतरे; " यशस्तिलक आ० ४, पृ० १०५ " श्रुतिस्मृतीभ्यामतीव बाह्ये” – यशस्तिलक आ० ४, पृ० १११ ; “ तथा च स्मृतिः " पृ. ११६; और " इति स्मृतिकारकीर्तितमप्रमाणीकृत्य " पृ० २८७ ।
: यशस्तिलक भा० ४ पृ० १०० में नीतिकार भारद्वाजके षाड्गुण्य प्रस्ताव के दो श्लोक और विशालाक्ष के कुछ वाक्य दिये हैं। ये विशालाक्ष संभवतः वे ही नीतिकार हैं जिनका उल्लेख अर्थशास्त्र और नीतिसार में किया गया है। * शास्त्रीजीका यह बड़ा भारी भ्रम है, जो सोमदेवसूरिको वे यशोधर महाराज के समकालिक समझते हैं । यशोधर जैनोंके एक पुराणपुरुष हैं। इनका चरित्र सोमदेवसे भी पहले पुष्पदन्त, बच्छराय आदि कवियोंने लिखा है। पुष्पदन्तका समय शकसंवत् ६०६ के लगभग है । और बच्छराय पुष्पदन्त से भी पहले हुए हैं।
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