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सोमदेवसूरिकृत नीतिवाक्यामृत ।
(प्रन्थ परि च य)
[लेखक-श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमी.] [श्रीयुत पं. नाथूरामजी प्रेपीकी देखरेखमें बम्बईसे जो माणिकचन्द्र-दिगम्बर- जैनप्रन्थमाला प्रकट होती है, उसमें अभी हाल ही सोपदेवसूरिकृत नीतिवाक्यामृत नापका एक अमूल्य ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है । इस प्रन्थके कर्ता और विषय आदिका विस्तृत परिचय करानेके लिए प्रेपीजीने प्रन्थके प्रारंभमें एक पाण्डित्यपूर्ण और अनेक ज्ञातव्य बातोंस भरपूर सुन्दर प्रस्तावना लिखी है जो प्रत्येक साहित्य और इतिहास प्रेमीके लिए अवश्य पठनीय और पननीय है । इस लिए हम लेखक महाशयकी अनुमति लेकर, जनसाहित्यसंशोधकके पाठकोंके ज्ञानार्थ, उस प्रस्तावनाको अविकलतया यहाँ पर प्रकट करते हैं-संपादक । ]
श्रीमत्सोमदेवसूरिका यह ' नीतिवाक्यामृत' संस्कृत साहित्य-सागरका एक अमूल्य और अनुपम रत्न है। इसका प्रधान विषय राजनीति है । राजा और उसके राज्यशासनसे सम्बन्ध रखनेवाली प्रायः सभी आवश्यक बातोंका इसमें विवेचन किया गया है। यह सारा प्रन्थ गद्यमें है और सूत्रपद्धतिसे लिखा गया है । इसकी प्रतिपादनशैली बहुत ही सुन्दर, प्रभावशालिनी और गंभीरतापूर्ण है । बहुत बड़ी बातको एक छोटेसे वाक्यमें कह देनेकी कलामें इसके का सिद्धहस्त हैं । जैसा कि प्रन्थके नामसे ही प्रकट होता है, इसमें विशाल नीतिसमुद्रका मन्थन करके सारभूत अमृत संग्रह किया गया है और इसका प्रत्येक वाक्य इस बातकी साक्षी देता है। नीतिशास्त्रके विद्यार्थी इस अमृतका पान करके अवश्य ही सन्तृप्त होंगे। यह प्रन्य ३२ समुद्देशोंमें x विभक्त है और प्रत्येक समुद्देशमें उसके नामके अनुसार विषय प्रतिपादित है।
प्राचीन राजनीतिक साहित्य ।। राजनीति, चार पुरुषार्थोमसे दूसरे अर्थपुरुषार्यके अन्तर्गत है। जो लोग यह समझते हैं कि प्राचीन भारतवासियोंने 'धर्म' और ' मोक्ष' को छोड़कर अन्य पुरुषार्थोंकी ओर विशेष ध्यान नहीं दिया, वे इस देशके प्राचीन साहित्यसे अपरिचित हैं। यह सच है कि पिछले समयमें इन विषयोंकी ओरसे लोग उदासीन होते गये, इनका पठन पाठन बन्द होता गया और इस कारण इनके सम्बन्धका जो साहित्य था वह धीरे धीरे नष्टप्राय होता गया । फिर भी इस बातके प्रमाण मिलते हैं कि राजनीति आदि विद्याओंकी भी यहाँ खूब उन्नति हई थी और इनपर अनेकानेक प्रन्थ लिखे गये थे।
वात्स्यायनके कामसूत्रमें लिखा है कि प्रजापतिने प्रजाके स्थितिप्रबन्धके लिए त्रिवर्गशासन-(धर्म-अर्थ-काम विषयक महाशास्त्र ) बनाया जिसमें एक लाख अध्याय थे। उसमेंके एक एक भागको लेकर मनुने धर्माधिकार, बृहरूपतिने अर्थाधिकार, और नन्दीने कामसूत्र, इस प्रकार तीन अधिकार बनाये * । इसके बाद इन तीनों विषयोंपर उत्तरोत्तर
x “समुहशश्च संक्षेपाभिधानम् "-कामसूत्रटीका, अ० ३।
" प्रजापतिर्हि प्रजाः सृष्टा तासां स्थितिनिबन्धनं त्रिवंगस्य साधनमध्यायानां शतसहस्रणाने प्रोवाच । तस्यैकदेशिकं मनुः स्वायंभुवो धर्माधिकारकं पृथक् चकार । बृहस्पीतरीधकारम् । नन्दी सहलेणाध्यामानां पृथक्कामसूत्र चकार । "कामसूत्र अ.१।
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