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अक १]
कुंरपाल सोनपाल प्रशस्ति [टिप्पणी-कुंवरपाल सेनपालकी प्रशंसामें किसीएक कविने हिन्दी भाषामें एक कविता लिखी है जो पाटनके किसीएक भंडारमें हमारे देखने में आई थी और जिसकी नकल हमने अपनी नोटबुकमे कर ली थी। उसका संबंध इस लेखके साथ होनेसे हम यहां उसे प्रकट किये देते हैं ।-संपादक । ]
कोरपाल सोनपाल लोढा गुणप्रशंसा
कवित्त । सगर भरथ जगि, जगडु जावड भये । पामराय सारंग, सुजश नाम धरणी ।। १ सेजे संघ चलायो, सुधन सुखेत बायो । संघपतिपद पायो, कवि कोटि किर्ति बरणी ।। २ लाहनि कडाहि ठांम, ठाम द्रग भांन कहि । आनंद मंगल परि परि गावे घरणी ।।३ बस्तपाल तेजपाल, हुये रेखचंद नंद । कोरपाल सोनपाल, कीनी भली करणी ।। ४ कहि लखमण लोढा, दूनीकुं दिखाइ देख । लछिको प्रमान जोपे, एसो लाह लीजिये । ५ आन संघपति कोउ, संघ जोपे कीयो चाहे । कोरपाल सोनपाल,-को सो संघ कीजिये ।। ६ सबल राय बिभार, निबल थापना चार । बाधा गइ बंदि छोर, अरि उर साजको ।। . अडेराय अवठभ, खितीपती रायखंभ | मंत्रीराय आरंभ, प्रगट सुभ साजको ।। ८ .. कबि कहि रूप भूप, राइन मुकटमनि । त्यागी राई तिलक, बिरद गज बाजको ।। ९ . हय गय हेमदान, मांन नंदकी समान | हिंदु सुरताण, सोनपाल रेखराजको ॥ १० । सैन बर आसनके, पैजपर पासनके । निजदल रंजन, भंजन पर दलको ॥ ११ मदमतवारे, विकरारे,अति भारे भारे । कारे कारे वादरसे, बासब सुजलके ।। १२ कवि कहि रूप, नृप भुपतिनिके सिंगार | अति वडवार ऐरापति समबलके ।। १३ रेखराजनंदकोर पाल सोनपालचंद । हेतवनि देत ऐसे हाथिानक हलके ।। १४
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