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जैन साहित्य संशोधक
[खंड २
२२ ff; 98 भागो साथे तो तेनाथी पण वधारे मळती आवती होय तेम जणाय छे. परंतु आपणने आ स्थळे आ बाबत काई महत्वनी नथी. तेनाथी जे कांई सिद्ध थाय छे ते मात्र एटलुं ज छे के 'आपणा सननी पछी केटलीक सदीओ सुधी नंदो अने मौर्यराजाओना कालना संबंधमा केटलीक कथाओ हिंदुस्तानमा प्रचलित हती.' (जेकोबी, परिशिष्ट पर्व. पृ. ५० टि. २). आ यधुं छतां आ ग्रंथमा जो कोई महत्त्वनो श्लोक होय तो ते ८, ३३९ मां आवेलो नीचेनो श्लोक छे:एवं च श्रीमहावीरमुक्ते वर्षशते गते । पञ्चपञ्चाशदधिके चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः ॥
आ श्लोकना महत्व उपर भार मुकतां, जेकोबिए केटलांक वर्षो आगम च जणावी दी, छे के आ श्लोक, महावीरना निर्वाण संबंधी एक नवी अने वधारे संगत परंपरानो सूचक छे. 99 ‘चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः' अने ६, २४३ ना अंते आवतो 'एष नन्दोऽभवन्नृपः' आ बन्ने पदोनी रचनाशैली एटली बधी मळती लागे छे के जेथी भाग्ये ज एम कही शकाय के ए अणधारेलीरीते-आकस्मिक रीते-लखाई गया होय. अने तेना उपरथी एवं अनुमान निकळत होय तेम लागे छ के हेमचंद्रे आ श्लोको कोई विशेष प्राचीन ग्रंथोमांथी अक्षरशः उद्धृत कर्या हशे अथवा तो कोई प्राचीन कालगणनात्मक प्राकृत गाथाओर्नु भाषांतर कर्यु हशे. हेमचंद्र फक्त एटलुंज जणावे छे के चन्द्रगुप्तनी पछी तेनो पुत्र बिंदुसार गादी उपर आव्यो हतो (८, ४४५) अने विंदुसार पछी तेनो पुत्र अशोकश्री राजा थयो हतो. (९, १४) अने अशोकश्रीए पोतांनु राज्य पोताना पौत्र संप्रतिने सोप्यु हतुं. आ संप्रति ते कुणालनो पुत्र हतो(९,३५) अने एक श्रद्धावंत जैन हतो. हेमचंद्रे आस्थळोमां तेओना समयनुं बीलकुल सूचन कर्यु नथी; तेम कालगणना साथे पण तेओर्नु अनुसंधान बताव्यु नथी. ते उपरथी जेकोबीना मानवा प्रमाणे आपणे एम धारी शकीए के तेमणे विक्रमसंवत् अने चंद्रगुप्तना राज्याधिरोहणना काल वच्चेनुं अंतर २५५ वर्षनुं बतावती परंपराने सत्यरूपे स्वीकारी हशे. आ गणतरी अनुसार महावीरनिर्वाण अने विक्रमना राज्यधिराहणनी घच्चना काल २५५+ १५५-४१० बराबर थाय. अने ए उप. रथी ए पण अनुमान फलित थाय के महावीर इ. स. पूर्वे ४६७ मा वर्षमा निर्वाण पाम्या हता. मारा मानवा प्रमाणे आज तारीखथी निर्वाण संबंधी बीजी पण बधी बाबतोनो निकाल आवी शके छे, अने तेटला माटे तेज खरी छ एम मानवू जोईए.
98. सरखावो; टर्नर, महावंश १ पृ. ३९ नी फुटनोट; तेम ज गायगर, दीप. महा० पृ. ४२ फू. अ॥ ग्रन्थ अने परिशिष्ट पर्व वच्चे नानामां नानी विगतोनी पण समानता छे. महावंशनी टीका पाछलथी थएली जणाय छे (गायगर, तेज पृ. फु. ३७) पण तेमांनी सामग्री जूनी छे.
99. कल्पसूत्र, पृ. ८. नी फुट नोट.
100. दिव्या. पृ. ४३० मां अशोक पछी संप्रतिनो जे उल्लेख थएला छे ते आथी वधारे महत्त्वना बन छ. नागार्जूनी गुफाना लेखाथी साबीत थयु छ के मगधमा अशोक पछी दशरथ गादिए आव्यो हतो के जेना विषे जैनो कशुं कहेता नथी. आ उपरथी, मि. विन्सेन्ट.ए. स्मीथे पोतानी अली हिस्टरी ऑफ इन्डियामां जे एम सूचन कयु के के-अशोकना सरण पछी तेना साम्राज्यना पूर्व अने पश्चिम एम बे विभागो थई गया हता, ते मने खरूं लागे छे. संप्रतिना पिता कुणालनो उज्जयनी अने तक्षशिला साथेनो सतत संबंध ए ज बाबत सूचवे छे. अन जैनो जे मौर्योनो राज्यकाल १०८ वर्षनो गणे छ तेनो पण कदाच आ हकीकतथी निकाळ आवी शके. कारण के इ, स. पूर्वे १८५ मां मगधमांथी ज्यारे पुष्यमित्रे ए वंशनो उच्छेद कर्यो तेनी पहेला ज पश्चिममां ए वंशनुं राज्य बन्ध थई गयु हशे. तेम छता, ए वात नोंधवा जैवी छ के मरुतुंगे आपेली कालगणनात्मक गाथाओमां पुसमित्त (पुष्यमित्र )नी राज्यना ३० वर्षांनी नांध लेवाएली छे. अने आ समय इ. स. पूर्वे २०४-१७४ ना गाळा साथे बंध बेसतो आवे छे. हुं, महाभाष्य अने मिनेन्डरना समयथी जे कालगणना नक्की थाय छे तेनाथी विरुद्ध आ उल्लेखने घटावी शकतो नथी,
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