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जैन साहित्य संशोधक
[खंड २
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आनो तात्पर्य ए छे के, अशोक बुद्धधर्मनो साचो अने विश्वासु अनुयायी बन्यो ते घखते देना अभिषेकने, साडा दश करतां पधारे, आशरे अगीभार वर्ष; थयां अने ते प्रमाणे गादी उपर आव्याने लगभग पंदर वर्ष थयां हतां. खडक आज्ञा नं. ८ मां तेणे जणाव्यु छ के ते पोताना अगीआरमा वर्षमां 'संबोधि प्राप्त करवा नीकळ्यो' हतो (अयाय संबोध); आ हकीकत सहसाराम आशामां 74 लखेली बाबत साथे ठीक मळती आवे छे. हवे आपणे दीपवंशमां का प्रमाणे अभिषेक पछीना प्रण वर्षोने, जो, सहसाराम आशामां जणाषेलां ' अढी वर्षोथी अधिक काळ साथे सरखावीशुं तो आपणे कबुल करवू पडशे के ते बन्नेनी बच्चे असरकारक साम्य दृष्टिए पडे छे, अने ते उपरथी एवं अनुमान थाय छे के वस्तुतः ते बन्ने उल्लेखो एकज बीनाने उद्देशीने करवामां आवेला छे. 75 आ उपरथी बीजुं पण एक अनुमान नीकळे छे के सिलोनना आ हेवालो-अथवा तेमनी मूळभूत प्राचीन अट्ठकथा--नी, अशोकना अभिषेक अने निर्वाण वच्चेना अंतरालने २१८ वर्षोनुं बताववामां गेरसमजुति थएली छे. आ २१८ वर्षों मूळमां अभिषेकने उद्देशीने नहि हतां परंतु कलिंगनी विजयसमाप्ति अगर प्रथम धर्मप्रवर्तन, अथवा आ बन्ने बीनाओनी साथे संबंध धरावतां हता. एटलु तो आपणे कबुल करवू जाईए के बौद्धोना माटे अशोकना अभिषेक करतां तेनुं बुद्धधर्ममां प्रवर्तन अति महत्त्वनुं हतुं. अने आटला माटे अशोकना आ बनाक्ने एक केन्द्र मानी बौद्धोए त्यांथी तेना संबंधी तेमनी कालगणनात्मक तेमज ऐतिहासिक नोधोनी शरुआत करी होय. कलिंगनी जीत कालगणनात्मक गणत्रीओमां घणुं करीने वधारे अगत्यनी न होती, परंतु तेनुं महत्त्व तेना धर्मप्रवर्तनने अंगेज छे. कारण के मारा पोताना अभिप्राय प्रमाणे, कलिंगनी अंदर, अगर कोई अन्य स्थळमां, अशोकना राज्य साथे कलिंगना मिश्रण थया उपर कोईपण संवत्नी स्थापना थई होय एवो एक पण पुरावो नथी. 76
त्यारे सिलोनना अहेवालोमा जणावेलां २१८ वर्षो असलमा अशोकना अभिषकेनी साथ
74. अहीआं में डॉ. एफ. डबल्यु. थोमसमी J.A. 1910, p. 507 मां आपेली स्पष्ट अने विश्वासजनक हकीकतोनो संपूर्ण उपयोग करलो छे..
75. बौद्धशास्त्रो अने आज्ञाओना परस्पर सरखापणाना टेकामां घणां प्रमाणो छ, जनो कोई पण निषेध करी शके तेम नथी. उदाहरण तरीके, दिव्यावदानमा, धार्मिक आज्ञाओना आस्तित्वना संबंधमा उल्लेख थएलो छ, अने ते स्थळे तेमनी संख्या ८४००० नी बताववामां आवी छे. आ संख्या हास्यजनक-कल्पनामय-लागे छे; परंतु तेमां आ आज्ञाओना संबंधां (पृ. ४१९, ४२९ इत्यादि) पञ्चवार्षिक नामनी संस्थानो निर्देश करे छे. आ संस्था ते धर्मयात्रा ज होवी जोईए, जे प्रस्तर-आज्ञा ( Rock-Ed.)३ अन ४ मां बताव्या प्रमाणे पांच पांच वर्षे थती हती. वळी दिव्याबदान पृ. ४०७ मां जणावेलुं छे के कुणालने तेना पिताए तक्षाशिलाना सुबा तरीके मोकल्यो हतो (हेम. परिशिष्ट, ९, १४ मां जणावेलें छे क तेने उज्जयिनी मोकलवामां आव्यो हतो.) आ उपरथी धौली अने जौगडनी आज्ञा १ ली मां आवता 'उजेनि (ते) कुमाले' अने 'ताखसिलाते ( कुमाले)' शब्दोर्नु स्मरण थई आवे छे. दिव्यावदान पृ. ३९० अने लाम्मन्दई शिलालेखनी वच्चे जे मेळ Barth, Journal des Savants, 1897, p. 73 अने बुल्हर, Ep. Ind. V; p. 5 बतावे छे, तेनो पिशल S. B. Pr. A.. W. 1903, p. 731, अस्वीकार करे छ; अने ते वास्तविक रीते लागे छे पण अचोकस. परंतु, दिव्यावदानमा अशोकनी तीर्थयात्रा संबंधी जे उल्लेख मळे छे ते वास्तावक छे.
76. डॉ. फ्रीट J. R. A.S. 1910, pp 242 ff, 824 ff, जे कहे छ के खारवेलना शिला. लेख उपरथी मौयवंशना आस्तत्वना संबंधमां कोई पण तर्क बांधवानो आपणने हक मळतो नथी, तेने हु समत छु.जा के ते लेखनी १७ मी लीदीना तेणे करेला अर्थने हं सर्वथा अस्वीकारणीय मानुं छु. डॉ. फ्लीटर्नु भाषांतर आ प्रमाणे
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