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अंक २] श्री महावीरनो समय-निर्णय
[१०५ उल्लेख होय तेम संभवे छे; कारण तेना नाम उपरथी जणाय छे के तेमां अन्यमतोना 45 ज संबंधमा ऊहापोह करेलो हतो.
(२) वर्तमानकालीन सिद्धान्तनी शैली ज एवीकृत्रिम छ के तेमां जोईती हकीकतो शोधी काढवी असंभवित छे. कारण के ते सर्व खंडित रूपे छे–जो के केटलेक स्थळे केटलाक भागोने कंटाळाभरेली भाषाशैलीमा विस्तृत करेला छे; तेम ज ते (सिद्धान्त ) उपरोक्त स्मारक गाथाओनी माफक तारवी काढी लीधेला या तो जूना सिद्धान्तमांना सामान्य रीते साचवी राखेला भागो जेवा छे.
आ विषय उपर हवे वधु चर्चा न करता हुं जैनोना संबंधमां कांई खास हकीकतो आपवा बाळां केटलांक बौद्ध ग्रंथोमांनां उदाहरणो आपशि. कारण उपर चर्चेलो विषय हुं अन्य स्थळे 46 चर्चवा मागु छु. आवी जातना घणा फकराओ जेमां मतोनी विगतो जणावेली छे ते प्रो. जेकोबीए संगृहीत कर्या छे. आ स्थळे साधारण महत्वनी बाबतोना विषयना केटलाके फकराओ आपशि; अने ते, जरूर होय तो, प्रमाणरूपे बतावी शकाशे के बौद्धो अने जैनो, पोताना संप्रदायोना आरंभ कालमां-तेओना संस्थापकोना जीवनकालमां-परस्पर घणा ज निकट संबंधमां रहता हता. जैनो पोताना धर्मप्रवर्तकोने 'अर्हत्' नुं पद आपे छे ए सुविख्यात छे. अने आ पद खारवेलनी शिलालिपिमां आवेला-समणो वा ब्राह्मणो वा अरहा (खार वेल. ५, ८, १) 47, आ एक वाक्यमां जोवामां आववाथी मारा धारवा प्रमाणे तेनो अर्थ 'जैन ' होवो जोईए. बीजी पण एक बाबत ध्यानमा राखवा जेवी छे के पाली ग्रंथोमां नातपुत्त अने बीजा पांच पाखंडी मताचार्यों माटे 'गणिन्', 'गणाचरिय', 'गणस्स सत्था', (संयुक्त नि० १,६६) अने 'तित्थकर' एवा इल्काबो जणावेला छे. मारा मत प्रमाणे आ इल्काबो बुद्धने 48 कदापि लगाडवामां आवता नथी, पण जैन तीर्थकर माटे ते बराबर बंध बेसता लागे छे; कारण के 'गण' शब्द प्राचीन समयमां जैन संघनो एक विभागसूचक हतो; जेनो अर्वाचीन कालीन 'गच्छ' अतिशब्द छे, अने तीर्थकर पद तो.महावीरनो अत्यंत सामान्य इल्काब छे जेनो हक्क गोशाले पण को हतो. आ संबंधमां कोईने शंका थाय तेम छे के आ बाबत कांई विशेष साबीत करी शके तेम नथी; कारण के आ इल्कायो बधा तीर्थको माटे सरखी रीते वापरवामां आव्या छे, पण आपणे याद राखq जोईए के जे गोशाल महावीर पछी सौथी वधारे महत्त्वना मनातो हतो, ते शरुआतमां महावीरनो मात्र शिष्य ज हतो; अने तेणे पोताना गुरु महावीरथी बे वर्ष पहेलां ज तीर्थकरपद प्राप्त कर्यानो दावो को हतो. वळी, गाथामां आ वन्नेनी साथे पकुधकच्चायन अने पूरणकस्सपनो उल्लेख थएलो छे. आ गाथा खरेखर जूनी छे अने ते संयुत्त नि० २, ३, १०, ६मां आवेली होवाथी विशेष प्रामाणिक गणावी जोईए. अने सु
45. प्रो. जेकोबीने (से. बु० इ०, पु० २२ पृ० ४५) दृष्टिवादना एक विशिष्ट भाग तरीके मनातां चौद पूर्वो नष्ट थयानुं प्रधान कारण तेमां महावीरना विरोधीओना सिद्धान्तोनुं वर्णन आपेलुं हतुं, ते लागे छे. परंतु आ अनुमान मने बीलकुल स्वीकारवा लायक लागतुं नथी.एनाथी विशेष अविश्वासपात्र कारण वेबरे आप्यु छे. Ind. Stud. XVI, 248, Cf, also Lumann Actes du VIe congres des Orient. III, 559. 46. उत्तराध्ययनसूत्रनी आवृत्ति जे तैयार थाय छे तेनी प्रस्तावनामां.
॥ अहेत् ए इल्काब पाखंडी मताचार्योना नाम सरखावोः राइझ डेविडस, Hastings' Encyclopaedia 1,774
48. सामञफलसुत्त ( दा०नि० १,७४) मां बुद्ध अन तेना विरोधी मताचार्यो, जे अहींआं बहु ज नजीकना संबंधमां जोवामां आवे छे, तेमना भिन्न भिन्न बतावेला गुणो या लक्षणो जुओ.
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