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जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट
[सं. पठाण आव्या | चहूआणनइ काढ्या, म्लेछाण हूओ। वर्ष जन्म हुओ | विक्रम सं० ११९७ वर्षि श्री षंभायते
हवई श्री देव लोडण पास तिर्थनी उत्पत्ति कहै छ। श्री सूरी मुधे धर्मोपदेश लह्यौ । वि.सं.१ १ १९वर्षे कुमार
गुज्जर देसि सेरिसा नगरें नागिंद्र गछ्इं श्री देवेंद्र पाल टीको हूओ । रतलई गुरुने घणइं ओच्छवइ शासूरि शिष्य सहित विहार करता आव्या । पिण गुरु लाई पधराव्या । सदेव व्याघ्यान सार कांइक सुकृत शिष्य थका ( ६१-१) वीराकर्षण विद्यानी पुस्तिक कहो । तिवारें सूरी कहीई गुप्त पणि राखइं । एकदा गुरु रात्रि निद्राई आव्या । दीर्वायुः परं रूपमारोग्यं श्लाघनीयता । पतळ एक शिष्ये तं पुस्तिका चंद्रमानई उद्योति वांची। अहिंसायाः फलं सर्व किमन्यत् कामदेवसा || १ || बावन वीर आव्या । कहि, किस्युं काम छै? | ते शिष्य एहवा वचन श्री गुरुनां सांभली चउमासई जीकहई इणि पुर जिन प्रासाद नही छइं ते मार्टि पछिम (६२-१ ) वाकूल भूमिका जांणी गुरु मुघे कुमारपालि दिशि जैन कांति नगरी थकी श्री जिन दर्शननो आ घणो नियम लीधो जे चउमासें सैन्य चढाई युध न करवओ। पुन्य जाणी तुह्मारी शक्ति इहां एक प्रासाद लाव्यो। ते वार्ता केतलेक दिने दिल्ली नगरई म्लछई सांभळी । तिवारे ते शिध्यना वचनें वीर कहें अह्मारुं प्राक्रम प्रभाति तिहां थकी सैन्य आवी अणहील्ल बाडे उत कुर्कट शब्द न हूइं तिहां लगण, शब्द पछी नहीं | पाषति गढ कोट नहीं तिवारि कुमारपालि गुरु विनव्याशिष्य आज्ञा लही बावन वीर जैन कांति नगरी थकी सैन्य १ अनइं युद्ध २ नो तुह्म मुघई माहाई नीयम छइं । रात्रि प्रासाद लेई सेरीसई नगरइं आव्या । एहवें उब सू गे कहई धर्म थकी कुशल हुसई । श्री सुरीई कंटेश्वरी थकी गुरु जाग्या । तिवारे आकासि कोलाहल, बावन पादर देवी स्मरीनें कहें जिन शासनई ए राजा नियम वीर नो आंण्यो प्रासाद श्री पासनो देखी चित्ते चिंतवई धारक छ तेह थकी परचक्रनो उपद्रव्य निवारो । ते गुरु ए. किस्युं ? पुस्तिकानो उपयोग आव्यो । एतलि तिहां आज्ञा लही देव्यांइं रात्रि निद्राई सुता म्लेछनई उपाडी पुस्तिका नही । श्री गुरुइं शिष्यनां काम जाणी श्री च. कुमारपालना महेलमा लावी मुंक्यौ । प्रभात जागी केश्वरी स्मरीनई कहई ए शिष्यने मालिम नही | रात्रि उठ्यो । स्व सैन्य अनुचर नही । एतलई चदति दिनई घणी छई ते माटि तुमो कारिमा कुर्कट बोलावओ। गुरु राजर्षिनई अनुचरें दंतधावन निमित्ते पावन जलसंपूर्ण आज्ञा थकी ते देवी तिमज कीधो । एतलई प्रभात हुई पात्र अंचला लावी दीधो । ते देषी मुगल कहइ-ए कुण जाणी वीर स्वस्थानक (६१-२) मोहता। एतलई स्थान? तं कण? ते अनुचर कहई ए राजा श्रीकुमरप्रासाद तिहांज रह्यौ । तेह थकी वि०११...वर्षे सेरीसा पालनओ मंदिर । हु तेहनो सेवक | ते । नगरई श्री लोडण पासनी थापना हुई। आ० श्री देवेंद्र वचन सांभली मनस्यु विचारई-हुं एहनो राज्य लेवा सूरी तिहां थकी विहार करी अणहील पत्तनई पंचाश्वरो आव्यो हुँ, पिण सांकडे हू आण्यो इंण ( ६२-२) ई, मणम्या | इति सेरीसा तीर्थ उत्पत्तिः ।
अनई एह महा भाग्यनो स्वामी मुझस्यु मैत्री वांछई ४२ तत्पट्टे श्री विजयसिंह सूरी | छई । एहना पीर पिण साचा छई । तओ ए राजानचारित्र चूडामणी बिरुद रधता विचरीं । एहवई सो- ओ हुँ मित्र | तिवारई मुगल्ल १ अनि कुमारपाल २ लंकी श्री कुमारपाल प्रगट हुओ । तेहनी उत्पत्ति कहहं बिहू मित्र हूई माही माहि भेट आपि पीराण पत्तन नगछई।
रनो नाम देइ, कुमारपालनई स्वधर्मि दृढता पणुं १ अनि गुर्जर देसि अणहिल वाडा पाटण पासे देइथली नग- उपगारी पणुं २ देषी प्रसंसा करतो दीली नगरई मुगल रई सो० श्री त्रिभुवनप ल भार्या वाघेली कास्मीरी | पुत्र पुहतो । श्री जिन सासनई महिमा श्रा। गुरु कीर्ति पांच, ते माही कनिष्ठ कुमारपाल नामी तेहनो वि.सं.११७७ हूइ । एतलई विक० म० १२०७ वर्षि सो० श्री कुमा.
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