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अंक ३]
वीर वंशावलि.
श्री यशोभद्र सूरी २ बीहूं पाल्ली नगर चाउमासे रह्या | मुखाका री पूर्वलो मित्र विरोधी उलख्यो । एतले श्री तिहां निरंतर आ० उत्तर दिशि सूर्य देवनो प्रसाद सुरीइं बदरी देवी समरी, मुहपछी फाडी तेहना खंड छई तेहिज दिसि देह चिंताई जाई । महा तपस्वी जांणी खंडई नकुल प्रगट कीधा । तेह थकी पन्नग नाठा । श्री दीवाकर आचार्यनई :प्रसन्न हूओ । आ. नई योगी म्लान वदनई नाठो । पुनः प्रासाद नो वाद हूओं । कहइं; कांइ वर मांगी । तिवारई आ० यशोभद्र कहई गुरु कांति नगरी थकी तथा वल्लीपूर थकी बावन वीरसकल वांछित दें । सूर्य देव कहि, हस्येइं । गुरु शिष्य नई प्राक्रमी श्री रुषभ प्रासाद आयो | योगाई शंभू तिहां निर्विघ्न रहई छई । एहवई गुरु श्री ईश्वरी सुरि प्रासाद आंण्यो । बेई प्रासाद थंभ्या । जट्टिले क्रोध-. स्वर्ग हुओ | चउमासई संपूर्णि विहार करता श्री य- नइ वसि मंत्र योग ( ४८-२ ) करि प्रतिमाना मुष ( ४७.२) शोभद्र सूरी बलीभद्र गुरुभाइ सहित सरिरा वांका कीधा । संघ गुरुने वीनती करी, देवदर्शनि नगर आव्या । तिहां श्री सूरीना उपदेशथी घासीर कोई मनुष्य न, आवइ । तियारि गुरुदै अष्ट्रातर जलकुंभ गोत्रे दा० धनराजई विक्र० सं० ९६९ वर्षि प्रासाद नीप- मंत्री बिंबनइं पधाल की। । चिंब मूल रूपी हुया । पुनः जावी श्री श्रीयांस चिंच थाप्यो । पुन इणहीज वर्षि प्रासादना थांभा तथा पाट डगमग डगमगता जाणी मुडाहडई नगरई श्री सूरीना उपदेश थकी किन्हडीओ गुरु दत्त आम्नाय थकी पथ्यरनई पाटि मंत्र लिषी सकल मासाद हूओ । तिहां साहमी वात्स्यले सांडेरा नगरई मासाद थिर कीधो । गुरु शंभु पासादन इंड मत्र बलई घीई हूंइ रह्यो । दो. धनराज गुरुनई वीनती करइं पाडयु | श्री जिन शासननो जय २ कार हुओ । श्री जे वृत नहीं । श्री सूरीई वीर विद्यानई प्राक्रमिं करी गुरुनी कीर्ति हुई । इम जटिलने अनेक वादि जित्या । पाली थकी बत अणावी साहमी वश्यलई, श्री गुरुनी जटिल देश नगरीमा फिरई।.... कीर्ति हूइ । पछी दिन श्रीजिं सांडेर थकी दो. धनराज मस्तकमां मणि लइ । ते तुम्हें मरण हूआ पछी घीनौ द्रव्य लेई पाल्ली नगरई आवी कहइं धीनो द्रव्य मस्तक मोडी उरही लेग्यो । ते पछी मुज देहनई लीओ । ते कहई धी कुण काम आव्यो । दो• धनराज कहै अग्निसंस्कार करज्यो । तिणई शिष्ये तथा संघे तिमप्रासादनई ओछ्वई साहमि वठली काम आव्यो । ते हिज कीर्छ । केतलेक दिने तिणे योगीइं गुरु मरण गृहस्थ हाटमा जाई घीना ठाम जूहं । धीना ठाम जांणी पूर्व संकेतई आवी दुधपात्र भरी वेगलो गुप्तई ठाली दीठा । एतलई व्यवहारी कहें ए द्रव्य तुम्हे रह्यो । गुरु कथके कल्पकनो चहि उपरि चंदुओ सुकृत करो । इणि धनराजै पाल्लीमध्ये सुकृत कीg । कधिो | बदरी देवी चहि पछवाडई प्रदिक्षणा दीये तिहां थकी श्री सूरीई आ (४८-१ ) हड, खमणूर, हुई, एतलि तिणे योगी वर्षा वायुनी उत्पत्ति किधी, करहेटक, कविलाण, भसूर प्रमुघ नगरें घणा मिथ्यात्वि जाण ( ४९-१ ) ई जे मस्तकनी बापरी लऊ । एतलि प्रतिबोधी श्री नाडलाई नगरें चउमासि आज्या । एट. बदरी देवीई वायुनई जागि पातानी शाक्ति थकी योगिलई तिहां पूर्व कलहकारी प्रतीज्ञाधारी पहिलानओ निं उपाडी चहि माहि गूरु एकठो ना यो । त मरण पामी बालमित्र दुकालई अन्नना अभावथी कानफटो. श्री सांडेर गछना रखवाल ओ यक्ष हूओ । देवी गूरु योगीनो शिष्य हूओ । मलीन बीद्या सीख्यो । कतलेक चितानें नमी स्वस्थानिके मुडाहइई नगरई आवी । श्री दिहाडे पाछो घर पलासी गांभइ आव्यो । वणिक पूत्रनी गुस्नी प्रतीज्ञा बदरी देवानी साहाग्य थी संपूर्ण हुई। सोध करतो जिहां नाडलाई नगरई शालाई गुरु ब्याख्या- इणि परे वि० सं० ९.७१ वर्षि श्री यशोभद्र सूरी न कहई छई तिहा आधी मस्तकनी जटा उतारी सर्प हूंता हूआ । कीयो । वायांनना लोक बीहता हूया। तेतलई गुरे यतः ...बहूआ १ किन्नधी २ रवीमधी ३
पौर. ४
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