________________
.
धीर वंशावलि.
कुमुदचंद्र कहै, रे चोकम ! किहां ए हरलिंग अनि किहां णनो विवरो | एहवें अबसरि चंदेरी नगरिं साधु शबनें राग द्वेष वर्जित ए परमेश्वर । यतः
दग्ध स्थिति हुई । ते पहेला साधुनी देह जिनावरने उपपापदावाग्निजलदः सुरेद्रगणसेवित: ।
नारिं काम आविं एहवउ जांणी जल थलने विषई साधु समस्तदोषरहिता निःसंग: कलवापहः ॥ १ ॥ एकटा थई परटवता । ते वार्ता वृद्ध परंपराई गुरुमुषअस्य पूजानमस्कारप्रभावभावनां विभाः ।
थी जांणज्या।। भवति संपदो वश्या मुक्तिश्चापि गृहांगणे । २॥
१२ तत्पट्टे श्रीसिंहागारे सारे । सततमुच्चरितं येन जिन इत्यक्षरद्वयं ।
तेहन कौशिक गौत्र ! एहबई बद्धः परिकरस्तेन मोक्षाय गमनं प्रति ॥ ३ ॥
श्रीशांतिसरि ।। १ ॥ एहवी कुमुदचंद्रकथक स्तुती सांभली मिध्यात्व शल्य
श्री सुधर्मसूरी || २॥ टाली समकित धर्मि निश्चल हुओ। महामहोत्सबै श्री
श्री आर्यनंदीसूरी !! ३ ॥ अचंतिपास थाप्या । गुरु वचने संबपति श्रीसिद्धाचलनो
श्री शांडिल्यसूरी ॥ ४ ॥ हुओ। पुनः महोग्र दानई करी स्वसंवत्सर प्रवर्तावतो श्रीहीमवंत सूरि || ५ ॥ हुओ । निकंट एकत्र राज्य भोगवी, पात्र अपा
श्रीलोहातसूरी ।। ६ ।। वनी परीक्षा करी, एक शत अनि बाविस नतन्न प्रासाद
श्रीरत्नाकर सूरी ॥ ७ ॥ नीपजा (२३-२ ) वी, सप्त शत जिर्णोद्धार करी, पर ए सात युग प्रधान प्रगट हूआ | पुनः श्री आय दुःख बालवा अग्रेश्वरी हुई, महा परमोपगारि थको पर- महागिरिना शिध्य स्थिविर श्री आर्य क्षित सूरी । तेहने मार वंश शिरोमणि श्रीविक्रमादित्य सुकृतनो संचय करी संघाडे लब्धि संपन्न श्रीदुर्बलीका पुष्फमित्र सूरी प्रगट सद्गतिनो भाजन हुओ। श्री कुमुदचंद्रे इणिं परे गयु हूआ । तेहने भणावानई बाष पाठ उद्यमई करी सूर्योतीर्थ पाछो वाल्यो । गाढा मिथ्यात्वीने गाडो समकिती दये सेर दस त जटराग्निं जरतुं । पुनः नागार्जुन सूरी ? कोथो । आवा बारें वर्धे श्रीवृवादी गुरुनें वांदी आणा- श्रीरकांदल सरी । २। श्रीपादलिप्त सूरी । ३ । औषधर्म लोप्यानी आलोयणा लेई, मिथ्या दुष्कृत देई, संघ धीइं पादलेप करी आकासमार्गि उडी श्री (२४-२) शाखिं स्व गच्छ, मांडले लीधा | श्रीवृद्धवादी गुरुई पोतानि सिद्धाचल । १ ! गिरीनार । २ । सम्मित शिधर । ३॥ पाटि थापि श्रीसिद्धसन सरि नाम दीर्छ । सम्मति ग्रंथं नंदीय ।४। ब्रह्माण बाटक । ५ । एवं पंच तीर्थनी यात्रा करता, अनुक्रमें विहार करतां, दक्षिण दशे प्रतिष्ठान करी पाक्षिक तपनुं पारणुं करता हूया । पुरई दिन ईग्यार अणशणिं, श्रीवारमुक्ति हुआ पछी, श्रीवीरमुक्ति हूया पछी पांचसओ अनि पचीस वर्षे च्यारसइ अनई सितातीर वर्षि पुनः विक्रम १८ श्री शत्रुजय उच्छेद हूओ। वर्षि श्रीसिद्धसेन सूरी स्वर्ग हुओ । यतः
श्री बीर निर्वाण हूआ पछी पांचसओ अनई चुमासवे पभावगा तेय जिण शासण संसकारिणां जेआ। लीस वर्षे गई थकि छटो निन्हव रोहगुप्त नांमि प्रगट भवतरण चिण ओ ए. ए. भाणिया जिणमयंमि । १ . हुआ। इति सिद्धसन सूरिसंबंध ||
श्रीवीर निर्वाण हूया पछी पांचसो अनि सडतालीस ११ तत्पट्टे श्री दिन्न सूरि ।। वर्षे, पुनः वीकम २६४ वर्षे, श्रीसिंहगिरि सूरि स्वर्ग हृया। तेहनो गौतम गोत्र । ए सुराई कर्णाटक देशिं विहार
१३ तत्सट्टे श्रीवज्रस्वामी । की ( २४-१) धो | एक भक्ति विगय रहित जाणवां । हवि श्री वास्वामीनो संबंध कहे छई । जंबुद्दीपे दए सूरि चउद उपगरणना धरणहार हुआ । अत्र उपगर- क्षिणाऽध भरते अवंति दिशिं तूबवन ग्रामि गौतम
Aho! Shrutgyanam