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जैन साहित्य संशोधक. धनमा गरर अने श्वेताम्बर ए ब विभागो घणा जुना लेखोमांर्थी थई शके एम छे, ए सिद्ध करवा भाटे घणा यवतीं पडेला छ तेनो पण एक अधिक पूरावो आमांथी विस्तृत पूरावा हुं आपी शकुं तेम छु; परन्तु तेम करवा मळी अवे. दिगम्बरो पोताना संघमा स्त्रीआन सामल करता आ विषयमा रस लेनार सज्जनाने प्रो. बुल्हरना करतानथी. फक्त श्वताम्बरो ज तेम करे छ. तेथी आले- लेखा ज स्वयं वांची लेवानी हुँ भलामण करवी योग्य खो उपरथी एम सिद् थाय छ के भथुरामांनी आ संस्था धारं छु. हजी जे एक बाबत मारे स्वास जणाववी जोईए. श्वेताम्बरेन। ज हती तथा ई. स. ना प्रथम संकामां आ ते ए.छे के, सुपसिद्ध चक्र अने स्तूप तथा तेना अन्य विभक्त अवस्था बरावर निश्चित थए ली हती. अंगो ए बौद्ध धर्मना ज खास बाह्य चिन्हो मनाय छे; ___आ उसो उपरथी एक बीजी हकीकत ए मळे के पण १८८३ मां लीडन मुकामे भराएली छट्ठी ‘इन्टरके जैन संघमा श्रावक-श्राविकाओनी व्यवस्थित रचना नशनल काग्रस आफ
नेशनल काँग्रेस ऑफ ओरीएन्टालीस्टस्' आगळ करी से उपर सूचना करेली जके जैन संघमां वांचेला लेखमां मर्डम पंडित भगवानलाल इंद्रजीए
आपण एक अगत्यनो विभाग गणायकजधर्मनी उन्न- बतावी आप्यु हतु के जैन लोको पण स्तूपोने पूजे छे. तिमा धगी महत्त्वनी बाबत छे. ए लेखोमां श्रावक अने अने हवे प्रो. बुल्हरे ऊंडी शोध खोळ कर्या श्राविका एवा शब्दो वपराएला छे जेने हाल सरावगी पछी सप्रमाण सिद्ध कर्यु छे के चक अने स्तूप विधेपण कामां आवे छे. बौद्धोमा पण श्रावक शब्द वप. नी अद्यापि चालती आवती विद्वानोनी मान्यता केवळ राएला उ पण त्यां तेनो अर्थ अर्हत् ( अमुक कक्षानो भूल भरेली छे. मथुरामाथी एक जैन स्तूपनां अवशेष सुधां साधु) एवो करवामां आवे छे. आ हकिकत श्रावकोनी प्रकट रीते मळी आव्या छे. पहेलाथी थती आवती भूलने चोकस सितिविषे उल्लेख करे.के एटलुंग नहीं, पण जैन लीधे शरुआतमा एम लाग्युं हतुं के आ स्तूप पण बौद्धोनो अने बौद् ए बे महान् धर्मोनी विशिष्टतानुं पण स्पष्ट हशे; परन्तु तेनी बाजुएथी ज्यारे बे जैन मंदिरोना अवप्रतिपादन करे छे.
शेषो मळी आव्या तथा जैन लेखो अने प्रतिमाओ विगेरे एक पीजी उपयोगी बाबत ए छ, के ते लेखोमा श्राव
पण त्यां मळी आव्यां त्यारे आ स्तूप पण जैनोनो ज कोनी जातिविधे पण वारंवार उल्लेख आवलो छे. जैन अगर होवो जोईए, ते विषयमा पछी कोई जातनी शंका रही बौद्धधर्म वर्णाश्रम दूर करवा मांगे छे, एवी जे मान्यता न
नहीं. त्यारबाद केटलाक कोतरेला पत्थरो पण मळेला हे, छ त तहन खोटी छ एम में पहेलां जणावेलं. एक जेना उपर तेना बीजा अपयशो साथे जैन स्तूपोनो माणस श्रावक बनवाथी वर्णभ्रष्ट थतो नथी. ते योतानी आकार कोतरेलो छे. आपणे हाल सुधी जेने बौद्ध जासिनो धंधो-रोजगार छोडी शके छ. परन्तु कन्यानी स्तूपो मानता आव्या छीए तेना जेवा ज आ स्तूपो के. आपले माटे तथा अन्य व्यवहार माटे तो तेने पोपानी जनी प्रो. बुल्हरे तो पोतार्नु अनुमान आगळ दोडावीने एम जातिनो ज आश्रित रहQ पंडे छे. एक लेखमा एक लहार पण कयुं छे के स्तूप-पूजा ए जुना वखतमा फक्त जैन दान आप्यानुं वर्णव्युं छे. जैन थया पछी ते लुहार बन्यो अने बौद्ध ज करता एम नहीं, परंतु चुस्त संन्यासीओ - हशे एम पानतुं भूल भरेलु छे, कारण के श्रावकोने माटे तो (ब्राह्मण धर्मना ) पण करता हता. एक जैन प्रतिमानी लुहारना धंधाना निषेध करेलो छे. तेथी आ उलेख तेना बेसणी जेना उपर कोतरकाम तथा लेख छ तनी शोध बापदादानी तथा तेनी जाति माटे ज शे. तो पण एम खास जाणवा जैवी छ. तेमां बौद्ध प्रतिमाओनी माफक जणाय छे के हालनी माफक ते बखते पण घणा खरा
ज एक त्रिशूल उपर चक काढेलुं छे. आ उपरथी एम श्रावको वेपारी वर्गना ज हता. .
सिद्ध थाय छे के चक्रनु चिन्ह ए केवळ बौद्धोनु ज नयी. जैन ग्रंथामां आपेली धगी बाबतोतुं समर्थन आ. ते लेखमा जणाव्या प्रमाणे, ते प्रतिमा, एक साधुना
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