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अंक •
डा० होनलना जैन धर्म विषेना विचारो.
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स्वतंत्र पुरावा मळी शके नहीं त्यां सुधी तेमना उपर अथवा साध्विओना उपदेशथी ए कार्य करवामां आव्यु संपूर्ण विश्वास राखी शकाय नहीं, ए स्वाभाविक ज छे. तेनां अन जे गण अगर संघना तेओ अनुयायी हता परंतु हवे आवा स्वतंत्र पूरावानी शोधो पण गया वर्षोमां तेनां नामो आपेला छे. आ समर्पणना लेखोमाथी घणी थएली छे, अने तेनु मान वीएनाना प्रो. बुल्हरनी तीत्र उपयोगी बाबतोना विश्वसनीय पुरावाओ मळी आवे छे. बुद्धिने घटे छे. ई. स. १८७१ मां मेजर जनरल सर प्रथम तो आ लेखोमा उपदेशक तरीके उलिखित ए. कनीम्हाने मथुराना कंकाली टीलाना खंडेरोमांथी साधु अगर साध्वि ओना जे जे गण-संघ शोधी काढेला लेखानु पुनर्निरीक्षण करीन प्रो. बुल्हरे आदिनां नामो एमां आपेला छे ते गणादि ई. स. ना तमांना कटलाक लखीमा जैनाना केटलाक आचार्यों अने पहेला अने बीजा सैकामा विद्यमान हता ए. पाबतना विभागोनां खास नामी शोधी काढा; अन तेथी ते वख- पुरावो कल्पसूत्र अने बीज! जैन ग्रंथोमांथी आपणने तना आकी लॉजी मल सव्र्हे खातान, बडा डॉ० जे मळी आवे छे. जे कौटिक नामना गणनो एमां वारंवार बर्गेस द्वारा ते टेकराने बराबर खोदाववानी व्यवस्था कर- उल्लख थएलो के ते गण सुस्थिताचार्य स्थापेलो हतो. वामां आवी, जे मुजब डॉ० फुहररना अध्यक्षपणा नीचे आ सुस्थित ई. स. पना बोजा सैकाना पूर्वार्धमा संघना १८८९ था १८९३ सुधी अन पुनः १८९६ मा तेनु आचार्य तरीके विद्यमान इता. स्पष्ट रीतेज आगण जैनोनी खोदाण काम करवामां आव्यु. आथी बीजा घण। नवा वेतांबर शाखानो हतो. आरीत आपणने आलेखो उपलेखो हाथ लाग्या अने तेनी नकलो डॉ० बुल्हर तरफ रथी ई. स. पूर्वेना बीजा सैकाना मध्यमां जैन श्वेतांबर रवाना करवामां आवी. तेमण ते लेखो, परीक्षण करी संप्रदायनी विद्यमानतानो परोक्ष पुरावो मळे छे एटलं तमाथी केटलाक खास खास लेखो चूंटी काढथा अने ज नहीं पण ई. स. ना प्रारंभना बे सैकामां ए संप्रदाय वीएना ओरीएन्टल जर्नलमां तथा एपीग्राफीआ इंडी- नो कौटिक नामे गण मथुरासुधी फेलाएलो हतो तेनो काना प्रथम बे पुस्तकोमा प्रसिद्ध कर्या. आमांना केट. प्रत्यक्ष पुरावो पण मळे छे. तथा ए लेखोमां तेनो जे लाक लेखो धणा उपयोगी छे. कारण के तेमां इंडो वारंवार उल्लेख आवे छे तेथी ते मथुरामां सारी पेठे जासिथीयन संवत ए.टले के इंडो-सिथीयन राजा कनिष्क, मेलो दृशं एम पण स्पष्ट जणायके. ते समय बुलन्द हविष्क अने वसुदेव उपयोग करला संक्तनी मितिओ शहेरमां पण एक एवी संस्था हती जेनो पुरावो ए लेखोआपेली छे. अराजाओ ई० स० ना प्रथम ये संका ओमां मां आवता उञ्चनगर अथवा वारण नामना समुदायना थएला छे अने तमनु राज्य हिंदना उत्तर-पश्चिम किना- साधुओनां नामो उपरथी मळे छे. ए बन्ने नामो उक्त राथी टेष्ठ मथुरासुधी प्रसयुं हतुं. आ लेखोनी मिति, ते शहेरना जुनां नामो हता. संवत्ना ५ था ९८ मां वर्ष सुधीनी छे, जे ई० स० ना बीजी बाबत ए के के, संघना एक अंग तरीके ८३ थी १७६ वर्षनी बराबर थाय छे. आमांना घणा साध्वी वर्गने जे गणवामां आवे छेतेनी हयातीनो पुरावो लेखो तो जैन प्रतिमा ओनी बेसणी ऊपर कातरेला छे. पण आ लखो परो पाडे इ. अने ते उपरथी विशेष ए तेमां ते मूर्ति बन वनार श्रावक अगर श्राविकाओना, जे पण हकीकत मळी आवे छे के पोताना धर्मनो विकास मंदिरमां ते मूर्ति स्थापित करवामां आधी तेनां, जे साधु करवामां आ साध्वी ओ पण वणो भाग लेती हती, अने
५ आ विषयनी गंध खोळना तेमना लेखो वीएना ओरिएन्टल खास करीने श्राविकाओमां. कारण के एक अपवाद जर्नल, १०.७ थी ९१, अने १८९६ मा प्रसिद्ध थवा छे; तेम ज सिवाय बधी ज श्राविकाओए साध्वीओना उपदेशयो १८९७ ना इम्भिरीयल एकेडेमी ऑफ सायन्सना जनलमां पण
प्रतिमा समर्पण करवान जणाव्युं छे. आ वात ने जैन तेमणे ते प्रकट कराव्या हे. ६ जुम तेमना सर्वे रिपोर्टर, भाग २.
सिद्धान्त ग्रंथोना लखाणथी समर्थन पण मळे छ. जैन
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