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जैन साहित्य संशोधक
हती. परंतु ते तेमनी आज्ञाने उलंधी पोतानी मेळे बुद्ध उपाालेनुं बीजुं कथन के, जेमां ते निगण्ठोने मानसिक पासे गयो अने बुद्धनी मुलाखातना. परिणामे ते तेनो पापो करतां काधिक पापोने वधारे महत्त्व आपनारा जणाअनुयायी बन्यो. आ वृत्तान्तमा निगण्ठोने जे क्रिया- वे छे, ते कथन जैन सिद्धान्त साथ बराबर मळतुं आदे वादी जणाववामां आव्य' छे, ते बाबत आ पुस्तकमां छे. सूत्रकृतांग २, ४ (पृ० ३९८ ) मां एवा एक अनुवादित सूत्रोना उल्लेखथी सुसिद्ध थाय छ:-सूत्र- प्रश्ननी चर्चा करवामां आवी छ के अणजाणपणे कराएकृताङ्ग १, १२,२१, ( पृ० ३ १९ ) मा जणावे छे के ला कृत्यनुं पाप लागे के नहिं. त्यां आगळ स्पष्ट रीते ' तीर्थंकर-अर्हन्ने क्रियावाद प्ररूपवानो-उपदेशवानो जणावेलुं छे के निश्चित रीते तेवु पाप लागे छे. ( सरखाअधिकार छे. ' आचारांगसूत्र १, १, १, ४ ( भाग १ वो पृ० ३९९ टिप्पण ६ ) वळी ते ज सूत्रना ६ ठा पृ० २) मां पण आ विचार, आ प्रमाणे दर्शावामां अध्ययनमां (पृ. ४१४) बौद्धोना ए मंतव्यनु केआव्यो छे:- ' ते आत्माने माने छे, जगत्ने माने 'अमुक कर्म पापयुक्त छे के पापरहित छे तेनो निर्णय ते छे, फळेने माने छे, कर्मने माने छे, ( एटल के ते आ कर्म आचरनार मनुष्यना आशय उपर आधार राखे छे,' पणां ज करेला छे अने जे आ प्रमाणेना विचारोथी स्पष्ट खूब खण्डन अने उपहास करवामां आव्यो छे. जणाय छे) ते
म कयु छ त बाजा पास करावाशत अंगुत्तर निकाय ३,७०,३ मा निगण्ठ श्रावकोना हुँ बीजाने करवा दईश. ' इत्यादि.
आचारोनुं वर्णन आपेलुं छे. ते भागनुं नीचे प्रमाणे महावीरना जे बीजा शिष्यन बुद्धे पोतानो अनुयायी भाषान्तर आपुं छ. ' हे विशाखा, निगण्ठनामे ओळखा. बनावी लीधो हतो तेनुं नाम उपालि हां. मज्झिमनि- तो श्रमणोनो एक संप्रदाय छे. तेओ श्रावकोने आ प्रकायना ५६ मा प्रकरणमा जणाव्या प्रमाणे तेणे बुद्धनी माणे उपदेश आपे छे. " हे भद्र, अहींथी पूर्वदिशा तरफ साथे, ए बाबतनो वाद कर्यो हतो के–'निगण्ठ नातपुत्त एक योजन प्रमाण भूमिथी बहार रहेता जीवतां प्राणिकहे छे तेम कायिक पाप मोटुं छे, के बुद्ध मामे छे तेम ओनी हिंसाथी तमारे विरम, तेवी ज रीते दक्षिण, पश्चिम मानसिक पाप मोढुं छे ? ए संवादना प्रारंभमां उपालि अने उत्तर दिशा तरफनी योजन प्रमाण भूमिथी बहार कहे छे के, मारा गुरु साधारणरीते कर्म अथवा कृत्य माटे रहेता प्राणिओनी हिंसाथी विरमद् " आ रीते दण्ड (शिक्षा ) शब्दनो उपयोग करे छे.' जो के आ तेओ केटलांक जीवतां प्राणिओने बचाववानो उपदेश उल्लेख साचो छे परंतु संपूर्णरूपे नहि. कारण के जैनसूत्रो- आपी दयानो उपदेश करे छे; अने एज रीते वळी तेओ मां कर्म अर्थमा पण ' कर्म ' शब्दनो तेटलो ज उपयोग केटलांक जीवता प्राणियोने न बचाववानो बोध करी थरलो छे. अने दण्ड शब्दनो पण तेटलो ज करता शिखडावे छे. 'ए समजाव कठिण नथी के आ थएलो छे. सूत्रकृताङ्ग २,२ ( पृ० ३५७) मां १३ शब्दो जैनोना दिग्विरति व्रतने उद्देशीने कहेला छे के, जे प्रकारना पापकर्मनु वर्णन करेलु छ जेमां पांच स्थळमा व्रतमां श्रावकने अमुक हद बहार मुसाफरी के व्यापार वि'दण्डसमादान' शब्द आवेला छे अने बाकीनां स्थळमां गेरे नहिं करवा संबंधीनो नियम उपदेशवामां आव्यो छे." 'किरियाथान' शब्द आवेला छे.
आ व्रत, पालन करनार मनुष्य, अलबत्त, पोते छूटी निगण्ठ उपालि विशेषमा जणावे छे के कायिक, वा- राखेली भूमि बहारना प्राणीनी हिंसा तो न ज करी शके चिक अने मानसिक एम त्रण प्रकारनो दण्ड छे. उपा- ए तो स्पष्ट ज छे. परंतु, आवा एक निर्दोष नियमने विलिनु आ कथन, स्थानांग सूत्रना त्रीजा प्रकरणमां (जुओ रोधी सम्प्रदाये केवा विकृत रूपमां आलेख्यु छ ? पण इन्डि, एन्टि. पु. ९, पृ० १५९ ) जणावेला जैन एमां ए आश्चर्य जेवू कशुं नथी. कारण के कोई पण धार्मिक सिद्धान्तनी साथे पूर्ण मळतुं आवे छे.
सम्प्रदाय पासेथी, तेना विरोधी मतना सिझन्तोनुं यथा
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