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________________ अंक ४ ] थी वधारे प्रसिद्ध छे; तेओ, ज्यारे बौद्ध धर्म स्थपाई रह्यो हतो त्यारे एक महत्त्वशाली संप्रदाय तरीके क्यारनाए प्रसिद्ध थई चुक्या हता. परंतु हजी ए प्रश्ननुं निराकरण थवं बाकी र छे के—ए प्राचीन निर्ग्रन्थोनो धर्म, ते खास करीने वर्तमान जैनोना आगमो अने बीजा जे वर्णयेला छे तेज हतो, के सिद्धान्तो पुस्तकारूढ त्यां सुधीना समयमां घणो रुपान्तरित थई गयो हतो. आ प्रश्ननुं निराकरण करवा माटे, अत्यार सुभीमा प्रकट थपला बधा बौद्ध ग्रंथोमां, जेमने आपणे सौथी जुना समजीए छीए तेमांथी जैन निगण्ठो, तेमना सिद्धा न्तो अने तेमना धार्मिक आचारोना विषयमां जेटलां प्रमाणो जडी आवे ते बधांनो ऊहापोह करवो जोईए. अंगुत्तरनिकाय ३,७४ मां, वैशालीना लिच्छविओमांना अभय नामे विद्वान राजकुमार निगण्ठोना केट लाक सिद्धान्तोनुं नीचे प्रमाणे वर्णन करें छे:- ' भदन्त ! निगण्ठ नातपुत्त जे सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी छे, जे संपूर्ण ज्ञान अमे दर्शनथी संपन्न होवानो ( आ आगळ जणावेला शब्दोमा ) दावो करे छे के “ चालतां, उभतां, ऊंघतां मने जागतां हुं सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी हूं " ते जुना कर्मोंनो तपस्या वडे नाश थवानुं प्ररूपे छे. संवरद्वारा नवां कर्मोने रोकवानो उपदेश आपे छे. कर्मनो क्षय थाय छे त्यारे दुःखनो क्षय थाय छे. ज्यारे दुःखनो क्षय थाय छे त्यारे वेदनानो अंत आवे छे. ज्यारे वेदना मटशे त्यारे सर्व दुःखनो क्षय थशे. आ रीते ज्यारे पापनो पूरो ध्वंस थशे त्यारे मनुष्य वास्तविक मुक्ति मेळवशे. " अने ज्यारे डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना ८ ग्रंथोमां थया १४ आ नामना, स्पष्टरीते, वे पुरुषो मळी आवे छे. बीजो अभय श्रेणिकनो पुत्र हतो भने जैनोनो सहायक हतो. तेनो जैनोना सूत्रो तेम ज कथा ओमां उल्लेख थएलो छे. मज्झिम निकायना ५ मां ( अभय कुमार ) झुत्तमा एवं वर्णन छे के निगण्ठ नातपुचे तेने बुद्धनी साधे वाद करवा मोकल्यो हतो. प्रश्न एवो चालाकी भरेलो तैयार करवामां आव्यों हतो के बुद्ध तेनो गमे तेवा हकार अगर नकारमां जवाब आपे पण ते स्वविरोध वाळा न्यायशास्त्र प्रसिद्ध दोषमा रुपडाया वीना रहे ज नहिं. परंतु आ युक्ति सफळ थई नहिं अने परिणाम तथा उलटं ए आव्युं के अभय बुद्धानुयायी थई गयो आ वर्णनमा नातपुत्तन । सिद्धांत उपर प्रकाश पांडे एवं कांई तत्त्व नथी. २६५ आ विचारोनुं जैन प्रतिबिंब उत्तराध्ययनना २९ मा अध्ययनमा मळी शके छे:- ' तपथी मनुष्य कर्मने छेदी शंके छे २७. ' 'योगना त्यागथी अयोगपणुं प्राप्त थाय छे; कर्म रोकवाथी ते नवीन कर्मने ग्रहण करी शकतो नथी अने पूर्वे ग्रहण करेला कर्मोंनो क्षय करे छे. ३७' आ प्रकारनी प्रवृत्तिनी बे अन्तिम दशाओ ( सूत्र ७१ अने ७२ मां ) वर्णवामां आवेली छे. अने वळी अध्ययन ३२, गाथा ५, ७ मां आवती नीचेनी हकीकत वांचीए छीए: - ' जन्म अने मरणनुं कारण कर्म छे अने जन्म अने मरण ए ज दुःख कहेवाय छे. ' आ उपरांत बीजी पण उपरना अर्थने मळती ३४, ४७, ६०, ७३, ८६ अने ९९ भी गाथानो संक्षिप्त अर्थ नीचे प्रमाणे छे:--- " परंतु जे मनुष्य इंद्रियोना विषयोथी अने मानसिक लागाणीओथी [ आनो अर्थ बौद्ध तत्त्वज्ञाननी 'वेदना' ना अर्थ साथे घणो ज मळतो आवे छे ] उदासीन रहे छे तेने शोक स्पर्श करी शकतो नथी. जो के ते संसारमा मौजुद छे तो पण ते दुःख परंपराथी, जेम कमलनुं पान पाणीथी अलिप्त रहे छे तेम, ते मनुष्य पण अखिन्न रहे छे. ' आ सिवाय बौद्ध ग्रंथमां, नातपुत्त सर्वज्ञान अने सर्व दर्शन प्राप्त करवानो दावो करे छे—ए प्रकारनुं जे कथन छे तेने स्पष्ट करवा माटे प्रमाण आपवानी जरूर नथी. कारण के आ तो जैन धर्मनुं खास एक मौलिक मंतव्य ज छे. निगण्ठोना सिद्धांत विषयक बीजी वधारे माहिती महावग्ग ६, ३१ ( S. B.E, पु. १७, पृ. १०८) आदिमांथी मळी आवे छे. ए. स्थळे सीह " नुं एक वृत्तान्त आपलं छे. ते सीह लिच्छविओनो सेनापति हतो अने नातपुत्तनो उपासक हतो. ते बुद्धने मळवा इच्छतो हतो परंतु नातपुत क्रियावादी होई बुद्ध अक्रियावादी हतो तेथी तेनी पासे जवानी तेने ना कहेवामां आवती १५ ' सीह ' नुं नाम भगवती [ कलकत्ता आवृत्ति, पृ. १२६७ जुओ होर्नलनी उवासगदसाओ, परिशिष्ट, पृ. १० ] मां महावीरना एक शिष्प तरीके पण आवे छे, परंतु ते साधु होवाथी महावग्गमां आवता आा नाम साथे तेनी एकता बतावी शकाय तेम नथी ! Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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