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________________ अंक ४] १२९ दक्षिण भारतमे ९ वीं-१० वी शताब्दीका जैन धर्म । दक्षिण भारतमें ९ वीं-१० वीं शताब्दिका जैन धर्म। [ लेखकः-स्वर्गस्थ कुमार देवेन्द्र प्रसादजी जैन ] गंग वंश। सिंहनन्दीकी चरणवन्दना करते हैं । अथवा जसि राजवं शका जन्म एक जैन धर्माचार्यकी कृपासे हुआ हो उसके भारतवर्षके प्राचीन राजवंशोंमें पश्चिमके गंगवंशीय राजाओंका कट्टर जैनधर्माविलम्बी होना भी कोई आश्चर्यराजा जैनधर्मके कट्टर अनुयायी थे | यह बात परम्परासे " की बात नहीं है । ऐसे लेख विद्यमान हैं जो इस बातचली आई है कि नंदीगण सम्प्रदायके सिंहनन्दी नामक को निस्संदेह सिद्ध कर देते हैं कि गंगवंशीय राजा जैनएक जैनधर्मके आचार्यने, गंगवंशके प्रथम राजा शिव धर्मके उन्नायक और रक्षक थे । ईसाकी चौथीसे मारको राज्यसिंहासन प्राप्त करनेमें सहायता दी थी। बारहवीं शताब्दी तकके अनेक शिलालेखोंसे इस बातएक शिलालेखमें इस बातका बर्णन है कि शिवमार का प्रमाण मिलता है कि गंगवंशके शासकोंने जैन मन्दिकोगुणी बमा सिंहनन्दीका शिष्य था, और दूसरेमें - रोंका निर्माण किया, जैन प्रतिमाओंकी स्थापना की, यह कि सिंहनन्दी मुनिकी सहायता से गंगवंश वैभवसंपन्न हुआ । एतदर्थ इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि जैन . जैनतपस्वियोंके निमित्त चट्टानोंसे काट काटकर गुफाएं तैयार कराई और जैनाचार्योंको दान दिया । ग्रन्थोंमें इस भावके श्लोक पाए जायं कि गंगवंशीय राजा मारसिंह द्वितीय। १देखो Repertoire depigraphie Jaina (A. इस वंशके एक राजाका नाम मारसिंह द्वितीय था, A, Guerinot शिलालेख नं. २१३ और २१४; तथा जिसका शिलालेखोंमें धर्ममहाराजाधिराज ' सत्यवाक्य' चन्द्रगिरि पहाडी पर स्थित पार्श्वनाथवस्तीके शिलालेखका निम्न कोंगणीवर्मा-परमानडी मारसिंह नाम मिलता है । लिखित पद्य इस राजाका शासन काल चेर, चोल, और पाण्ड्य “योऽसौ घातिमलाद्विषदबलशिला-स्तम्भावली-खण्डन-- न वंशोंपर पूर्ण विजयप्राप्तिके लिये प्रसिद्ध है । मारसिंह ध्यानासिः पतुरर्हतो भगवतः सोऽस्य प्रसादीकृतः ।। द्वितीयने अपने शत्रु बज्जलदेवके साथ सर्वोत्कृष्ट विजय छात्रस्यापि स सिंहनन्दिमुनिना नो चेत् कथं बा शिला प्राप्त किया और गोनूर और उच्छंगीमें उसने बहुत घनघोर स्तम्भो राज्यरमागमाध्वपरिचस्तेनासिखण्डो घनः॥ युद्ध लडे । जैन सिद्धान्तोंका सच्चा अनुयायी होनेके (श्रवण बेलगोल शिलालेख, नं. ५४, पृष्ठ ४२) कारण इस महान् नृपने अत्यन्त ऐश्वर्यसे राज्य करके २ सलेम जिलाकी Manual-Revd.T. F.Foulkes राजपद त्याग दिया और धारवार प्रांतके बांकापुर ना. द्वितीय भाग, पृ० ३६८ का निम्न लिखित पद्य देखिए मक स्थानमें अपने प्रसिद्ध धर्म-गुरु अजितसेनके सन्मुख “यस्याभवत् प्रवरकाश्यपवंशजोऽग्रे कण्वो महामुनिरनल्पतपःप्रभावः । ३ "श्रीदेशीयगणाब्धिपूर्णमृगभृच्छ्रीसिंहनन्दिवतियः सिंहनन्दिमुनिपपतिलब्धवृद्धि श्रीपादाम्बुजयुग्ममत्तमधुपः सम्यक्त्वचूडामणिः ।। गंगान्धयो विजयतां जयतां वरः सः ।।" श्रीमज्जैनमताब्धिवर्द्धनसुधासूतिर्महीमण्डले लुईस राईसके पाठानुसार 'महिप' की जगह 'मुनिप' पाठ रेजे श्रीगुणभूषणो बुधनुतः श्रीराजमल्लो नृपः ।।" दिया है, जो ठीक संगत मालूम देता है। (बाहुबली चरित्र, श्लोक ८) Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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