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________________ MAARAAna अंक ३] वीर वंशावलि. इग्यार लाष द्रव्य सुकृति करी पांच लक्ष मनुष्यनो संघ चारित्र न संभवे । पिण ते इम न कहि । इम हुंति पिण लेई श्रीरुषभदेवनो चतुर्मुष प्रासाद नीपजावी ते माही गछनायकने चारित्र संभवई-यदागमे-- सप्तधातु चउद शत मण प्रमाणे तेहना बिंब चार कराव्या। साले नाम एगे आयरिए एरंडे नाम परिवारे । तेमाहि आठ बिंब का उसगीया अने च्यार बिंब चतुर्मख एव च उभंगी जाणवी । हवई कटुक गृहस्थनी प्रासादि मूलनायक श्रीरुषभदेवना जांणवा | वि० सं० उत्पती कहई छई-गुजरात देशि वडनगरे नागर १४५४ वर्षे श्रीसुमति साधु सुरीई प्रतिष्ठयौ । श्रीसूरी ज्ञाति वृद्ध शापाई टोकर गौत्रि सा० वाणारसी, तेहनी अतिचार रहित चारित्र धर्मने आराधता, सुध परुपक स्त्री हरी, पूत्र कडूओ नामि छइं । पिण ते देव गुरुनो...। बिरुद धारक वि० सं० १५५१ वर्षे खमणुर गामि पं० हर्ष कीर्तिगुरु मिल्या । तिणी भव्यात्ना जांणी कडुश्रीसूरीई स्वर्ग हूओ । ओ बोलाव्यो । यती जांणी नम्यो । गुरु पासे रह्यौ । ५५ तत्प? श्रीहेमविमल सुरी । वृद्ध जांणी कडुओ विशेष भक्ति साचवें । एहवई गुरु (२) श्रीकमलकलस सूरी | आणा लही शिष्य अम्मदाबादई चोमासे गया । गुरुनी (३) श्रीइंद्र नंदी सूरी। सेवा करतां केतलेक दिने गुरु मुख थकी कडूओ श्री ए त्रिहु गुरुभाइ तेमांहि श्रीकमल कलस सूरी थकी सिद्धांतनो समझू थयो । सचित्त त्यागी श्रावकनी करवि० सं० १५५५ वर्षे कमल कलसा गछ हूओ। णाई आगलो हूओ । तियारि गुरु कहई सा० कडूया पुनः श्रीइंद्रनंदीसूरी अणहिल्ड वाडा पाटण पार्श्व तुमे परे जाओ संसारि थाआ । ते गुरु बचन सांभली कुतपुर ग्रामें स्वशिष्यने आ० पद देइ गामने नामें श्री- कडूओ कहइं, तुम जे हवा...। सा. कडूया ना वचन कुतपुर सूरी नाम दीधु । तिहां थकी वि० सं० १५५८ साभली योग्य जाणी प्रसन्न पणई गुरु मुखि वीसइं वर्षे वर्षि कुतपुरा गछ ( ९७-१)कहिवाणो । एतलई ए सा० कडूई चोथु व्रत आदर्यु । (९८-१) श्री पंडितजीई बिहुं लघु गुरुभाइना भिन्न गछ हुंया । अनि श्रीहेमवि- कां-जे तुम्हे गुरु लोपा न थासो । तिवारई कडूओ मल सूरी जे क्रिया भ्रष्ट साधु समुदाय गछ मर्यादा शि- कहई-पिता माता जो वृद्ध नागर हुई अनि वणिथल जांणी देश आज्ञा देता हुया । श्रीगुरु ब्रह्मचारी कनो पुत्र ; तओ उपगारी गुरुने नहि लो | तिवारें चुडामणि बिरुद धारक निर्लो भतापणे सकल जन वि- गुरे सा० कडूयानई क्षेत्रपालनो वर दीधो । गुरु कहें ध्यात कीर्ति संवेग रंगई समतावंत पक्वान्नादिक त्याज्यता, तुमारो उदय थिरापद्र नगरई श्रीमालि वृद्ध शाषा त्रु अघणा जीव लुपाक मतनई तजी श्रीसूरी हस्ति दीक्षा लेइ वटंकि छई, अस्मिन् देसि नही छई । ते माटि तुम्हे तिहां तपानिश्राई चारित्रना भजनारा हवा । रु० जाओ | सा कहओ गुरु वांदी आणा लही केतलेक दिने गणपति रु० श्रीपति रु. वीपा रु० जगा प्रमुष नवदी- श्री शंखेश्वर पासनई नमी अनुक्रमि थिरापद्रइ आव्यो । क्षित साधु ६८ युक्ति प्रतिबोधी तपा कीधा । त्यारे अन्य जिम श्री पंडित श्रीहर्ष कीर्तिई कहयुं हुतुं, ते तिमज सत्य साधु क्रिया उदारवा तत्पर थया । सपरिग्रहि जे त्रांबा- हूओ । एकदा सा० कडुओ गृहस्थ प्रति उपदेश कहईना पात्रां, त्रपणी, लोट प्रमुष जेहने जाणता तेहनें संघ बिहज्जार अनि च्यार युग प्रधान कहइं छइं, पण ते अने पंक्ति बाहिरनी आलोयणा कहेता | एक मुक्त उप- बिहज्जार अनि बि जाणुं, एक एह संदेह । १ । पुनः . वास, पाराणि नीबी छट अटम, नीवी पारणे गंटीसही पांचमा आरामां सुसाधु सुचारित्री नही, ए संदेह प्रमुख तपना कारी भूमंडलें विचरई। एहवयं समयई क- छइ । २। संप्रति वर्तमान कालि चारित्रिया साधु मुज टुक नामि गृहस्थनी परुपणा हुइ । ज क्रिया शि- दृष्टि आवता नथी, एतले एहनो पिण संदेह । ३ |इमथिल साधु समुदायमा रहित चारित्रियाने ( ९७-२) गुरु लोपी मिथ्या प्ररूपणा करतो त्रिण थुईइं ( ५८-२) Aho ! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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