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जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट.
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ठवण नीक्ष/ छई अनी नंदी प्रभुष सिद्धान्ते पूर्वि चोरासी आगम का छई ते वीर नीर्वाण हुया पछी त्रिणवार बार दु:काल पडयो तिहां ८४ आगिमनो विछेद थयो । तिवारे सकल सुविहित गितार्थे मिली साधु मुष थकी जिम सांभल्युं तिम उद्धभ्युं छ । पछी तो ते केवलीनई गम्य, मनुष्य कुण मात्र । हा पिण नहि ना पिण नही । इम घणई नयई उपनयई श्री गीतार्थ समझायौ पिण ते लुको कदाग्रह न मुकई। जिन बिंबनी निंदा करतो जांणी ज्ञाती पंक्ति बाह्य | तेह थकी व कोधी संसार पशुं तजी वि० सं० १५३० वर्षे समणोपासक वेष आदरी अणहील वडा पाटण थकी ( ९५ - १ ) सिद्धपुर नगरे आग्यो । तिहां प्राग्वादि तपा लुकाई ज्ञाति भेद हुआ । तिहां थकी केतक दीने श्री सीरोही देशि अरवाडि गांमई आव्यों तिहां उपकेश वृद्ध शाषाई सा० भाणो रहि छई तिणि समणोपासक सा० लुकानो उपदेश सांभली स्वस्ति सा० भाणे दिक्षा लोधी । वि० सं० १५३२ वर्षि प्रथम वेषधर रु० भाणो हुआ । पुनः वि० सं० १५४० वर्षि श्री सीरोही नगर वास्तव्य ओ० स० वृ० साथरीया गौत्र सा० भीदें रु० भाणा हस्ति दीक्षा लीवी | एतले वि० सं० १५३५ वर्षे श्री सत्यपुरें सा० लुकानो आयु पूर्ण हुआ । तिहां थकी रु० भाणो शिष्य रु० मीदा गुजराति अहिमदाबाद नगर माहि शाहापुरी उष्ण कालि आवी रह्या । तिहां रु० भीदानो उपदेश सांभली श्रीमाली लघु शाषाई सा० नानचंदि रु० भीदा हस्ते दिक्षा लीधी । नानां रुषि नांदधुं । तेहनो शिष्य रूप रुषि हुआ । इत्यादि कुमती छे तेहनो संग तजवो । सुमति भजवो । उत्तम जीवे स्व आत्महित काराणे चितई ( ९५-२ ) श्रुद्ध सहहणा घरी श्री जिन भक्ति तेहिज मुक्ति पंथ गमन रुप जांणी आदरवी । यथोक्त:---
वर गंध १ धूप २ चोखीह ३ कुसुमेहि ४ परदीवेही ५ नैवेद्य ६ फल ७ जलेहि ८ जिण पूआ अहा होई || १ ||
[ खंड १
इयादि अष्ट विधिना जिनराज पूजा ख्याता कृता सुरनरगणैः सदैव खंडी कृता सुमतिभिः कलिकाल योगात् ॥ इति श्री जिन बिंब उथापक सा० लुका उत्पत्ति समाप्त।
हवि मांडवी बंदरे तपा श्री सोमदेव सूरी १, खरतर श्री जिनहंस सूरी २, अंचलीक श्री जयकेसर सूरी ३, ए त्रिहुं गन्ना आचार्य तिहां आव्या । तिवारई सोरठ देशि लकाना मतनो विस्तार जांणी ए त्रिहुंगीताथै मिलि वि० सं० १५३९ वर्षि आपआपणा गछ थकी आज्ञा धर्म थाप्यो । एतलई इहां थकी आदेश निर्देशनी मर्यादा थपाणी । पुनः पात्रमाहि सफेदानी ओली एक दीवानी आलोयण अटमनी साधुनई कहावी । ते पहिला स्वस्व संवादक समुदाय मध्ये जे गीतार्थ दीक्षाई वृद्ध हुई तेहनई ( ९६.१ ) मोटा मोटा क्षेत्रनी श्री पूज्य चीष्टीका देता । इम संकल संवाडे ए नीती । पछई ते वृद्ध गीतार्थ साधु प्रमाणे क्षेत्रि आज्ञा लही साधु बे तथा व्यार विहार करता | एहवे वि० सं० १५४७ वर्षि गूर्जर देशि धानधार खंडई श्री यक्षनी उत्पत्ति हुई । श्री सुरी भुतगामें बलदुवई पांच प्रासाद प्रतिष्ठया | वि० सं० १५३७ वर्षि हाडोती देशि सुमाहली गामे श्री सुरीनो स्वर्ग हुआ । २ आचार्य श्री सोमदेव सुरीनो वागड शि वढियार नगरें स्वर्ग हुओ ।
५४ तत्पट्टे श्रीमती साधु सूरी |
तेहनो जन्म अर्बुदासने वेलांगरी नगर प्रा० वृ० नारण गोत्रि सा० टिड्डु, स्त्री रुडी कुझे वि०सं० १४९४ वर्षे जन्म | वि० सं० १५११ वर्षे दीक्षा । वि० सं०. १५१८ वर्षे गछनायक पद । श्रीसूरीये जेसलमेरे, कृष्ण गढ़ें, अर्बुदासनई, देवके पट्टणि, गढे नगरें, खंभायतें, गंधार, ईंडर नगरई ज्ञानकोश गितार्थ पासी सोधाव्या | ज्ञान जत्न कीधो । श्रीगुरुना उपदेश थकी मालव देशी मांडवगढि प्रा० वृ० सरहडीया गोत्री पातसाहना द्रव्यना भंडारी खजानाना ( ९६ - २ ) भलामणिया सा० सहसा भाई सुलतान श्री अर्बुदगिरि उपरि अचलगढ
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