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________________ .४८ जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट. प्रा. वृ० सा धुलई श्री रुषभ १ श्री शान्ति २ श्री नमि बिहु हाथ जोडी शुभ निर्मलाशयथी विनती करी किसु ३ श्री पास ४ श्री वीर ५ एवं पंचतीर्थोना प्रासाद पांच मांगइ छइं? गाथाजुदा जुदा निपजाव्या । तिहां थकी श्री अर्धदाचलनी सुलही विमाणवासं यात्रा करी श्री भार्या नगरई आव्या । तिहां समस्त एगच्छता वि मेइणिय सुलहा । संघइं श्री गुरुने ( ९१-१ ) उपदेशी भायी नगरई दुल्लहा पुण जीवाणं मासाद कीधो । एवं भट्ठां प्रमुष नगरई अर्बुदासनि श्री जिणंदवरसासणे बोही ।। १ ।। (९२-१) सूरीना उपदेश थकी सप्त प्रासाद नीपजाव्या | एकवीस इणि परि सुशील व्रत आराधतो, निरंतर श्री जिन जीर्णोद्धार हूया | श्री सूरी नीतोहडा नगरे आव्या । भक्ति साचवतो अन्य घणा साधर्मिक पाषंतो संसारनि तिहां संप्रति नृपकारक प्रासादि वि० सं० १४८१ वर्षि विवई रहि छई। देवका पत्तन थकी तेडावीने बाबायक्षनी मूर्ति नीतोडे श्री गुरुइं स्व शिष्य श्री भुवनसुंदर सूरीनई श्री पासादमा थापि । तिहां थकी श्री सूरी जीवित स्वामी नंदी- शीरोही नगरई चौमासानी आज्ञा दीधी । पुनः श्री जिनपुरे, पुनः वीरवाटके श्री बंभणवाडिनी यात्रा करी सरस्व- सुंदर सूरीने श्री श्रीमाल नगरी चोमासानी आज्ञा कही । तीने नमी अनुक्रमि मेवाडदशी गोडवा खडे नाडलाइ लिग तिहां गुरु आज्ञा लही विहार कीधी। श्री गुरु नगरि श्री नमि प्रमुष सकल प्रासादना देव नमी तिहां राणकार की विहं शिष्य यक्ति नाडालनगरी चोवर्षा कालि रह्या । कतलेक वर्षे श्री सूरि राणपूर नगरई म.सी आव्या । वर्षाकाल संपूर्ण स्वपवर श्री मुनिचौमासि रह्या । पातसाह श्री पीरोजना हूकमथी प्रा० सुंदर सूरीनई गछ भलावी श्री गुरु आम नृपति निर्मावृ० सं० वरणि श्री गुरुनो उपदेश लही वि० सं० पित श्रीवीर दर्शनई उत्कंठित गोपनगरे चउमासी रह्या । १४६९ वर्षे श्री राणपुरे प्रासादारंभ कीधो । पुनः वी० एहवई भाष्य त्रिणनी चूर्णि २, कल्याणकस्तव २, सं० १४९८ वर्षि चतुर्मुष प्रासाद संपूर्ण हुओ । तिहां रत्नकोश ३; पुनः योग शास्रनो ४, उपदेश मालानो ५, श्री सूरीई कृष्ण सरस्वती बिरुद धारक श्री मुनिसुंदर घडावश्यकनो ६, नव तत्वनो ७, आराधना पताकानो सूरी १ महाविद्याविडंबनटीकाना कारक श्री ( ९१-२) ८, इत्यादि ग्रंथनी बालावबोधना कारक श्री सोमसुंदर जिनकीर्ति तूरी २ कंटगत एकादशांग सूत्रार्थ धारक सूरी वि०सं० १५०१ वर्षे स्वर्ग हुया ।। श्री भुवनसुंदर सूरी ३ दीपालीकादि माहात्म्य कारक श्री ५१ तत्पट्टे श्री मुनिसुदर सूरी । जिनसुंदर सूरी ४ ए च्यार शिष्य युक्ति शुभसकल, तहनो वि. सं. १४३६ वर्षि जन्म । ( ९२-२) वसादि नव पाठक युक्त; पंडित, गणि, रुघी युक्त इत्यादि स. १६४३ वर्षे बन | सं. १४६६ पाठक पद । से. पांच शत साधुनई परिवारि करी सहीत वि०सं०१४५९ १४७८ वर्षि सूरी पद । बाटलीना नादना एकशत अनि वर्षे सा० धरण निम्ापित त्रैलक्य दिपिका नाभि चतु- आठ शब्द तहना आलखणहार, श्री कृष्णसरस्वती बिरुदभुष प्रासादें श्री रुषभादि अनेक बिंबनी प्रतिष्ठा कीवी धारक, श्री उपदेश रत्नाकर ग्रंथकारक, श्री शांतिकर प्रथम सं० १४९५ वर्षि सा० धरणो श्री सिद्धाच िस्तवन निर्मापितेन तन्मंत्रीतजलेन योगिनिकृत मारि उपसंधवि हओ स्त्री वर्षे १८ मई सा० धरणो वर्ष २१ द्रवनिवारक, सुलभबोधी प्राणिने उपदेश दावक, श्री मुनि मई श्री सिद्धारली मुख्य तीर्थकरने आगली श्री पात- सुंदर सूरि सं. १५०३ वर्षि श्री कारटानगरे स्वर्ग लह्यौ ॥ साह मंत्री ते सं० संघाते इंद्र मालनई अवसरई सजोडे ५२ तत्पट्टे श्री रत्नशेखर सूरी। चोथु व्रत उच्चरी, गुरु मुखी तिहां पोते सं० धरणि श्री जवचंद्र सूरी। इंद्रमाल पिहिरि । पुनः सं० धरणो मुख्य जिनता युग श्री रत्नशेषर सूतीनो सं. १४५७ वर्षि जन्म । सं. Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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