SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'वीर शापलि. ४७ ( ८९-१) आंबाना मूल हेठि द्रव्य छई त तूं भूमि पहिलांना हिसठि हज्जार सोनईया, पुनः अन्य द्रव्य षणिं काढि लेजे । ए तुझ भाग्यनी छ ।' ते वचनें सं. स्वघर थकी लीधी तेहनी संख्या एक लाष अनि पिस्ताग्रामि तिमज लघु लाघवी कलाना योग थकी माता स्त्री लिस हजार सोन (९०-१) इया एकठा मेली वि. पूनी प्रमुषी ते द्रव्य स्वगृहे थाप्यो । आंबानी मूलि पाणी सं. १४५१ वर्षि श्री कल्पाध्ययन सूत्र १ अनि आ. लूण माटीई करी सिंच्यो । अनुक्रमि उष्णकालि ते सहकारी श्री कालक सूरी कथा २ एवं सचित्रीत स्वाक्षरे तथा सुगंध मुहर आवी तिमज फल हया । ते फल यत्ने जा- रुपाक्षरि लिखावी सकल साधु प्रति शानपुण्यार्थे ते प्रति लवी सध्वास्त्रि आदि गीत वाजीत्र चि० श्री ग्यास. वाचवा मणवा दीधी । केतलिक प्रति ज्ञान कोशि दीनने चरणे भेटी कीधा । संग्राम हाथ जोडी कहई ज्ञानलाभार्थि थापि । पुनः गुरु वाक्थे मालव मंडले श्री 'पा० सिलामति ! ए फल सुगंधओ वांजीर आंबके। मांडवगढि श्री सुपासनओ प्रासाद, मुगसिपुरइं श्री ते सांभली ग्यासदीन त्रूठो, पांच वस्त्र देइं वरि कामदार मुगसिपासना बिंब प्रासाद वि. सं. १४७२ वर्षि थाप्यो । कीयो । ते संपदावंत हुओ । एहवई तिहां विहरता श्री भेइ, मंदसार, ब्रह्मंडल, सामलीया, धार, नगर, खेडी, सोमसुंदर सूरी आव्या । सो० संग्राम संघ समस्तना चंडाउलइ प्रमुष नगरई सो. संग्रामि सत्तर प्रासाद आग्रहई तिहां मांडवमदिं श्री सूरी च उमासई रह्या । निपजाव्या । इणिहिज सूरीई प्रतिष्ठथा । एकावन जीर्णोसदैव सुर्योदयी श्री भगवती अंगनी व्याख्या कहई। द्वार निपजाव्या । इत्यादिक सुकृत श्री गुरु बनि सो. सो. संग्राम १ माता २स्त्री ३ सहित निश्चल निर्मलई संग्रामई कीधी इति ।।। चित्ते सहहणांई सांभली । जिहां छत्रीस हज्जार बार श्री सूरी चरित्र, तप, शीलनई आराधता, द्रव्य ? 'गोयमा ! गोयमा ! ' एहवं नाम आवई (८९-२) क्षेत्र २, काल ३, भाव ४, अनुमाने विहार करता, पुनः तिहां सो• संग्राम नाम नामि एक एक सोनइओ मुकई। गुजरि वटपद्र नगरई, संखेहडा नगरई, डभोइ नगरें एलई श्री भगवती सूल अंग संपूर्णि छत्रीस हजार जंबसर न०. आमोद्र न०, खंभायत न०, अहिमदाबाद सोनइआ सो संग्रामइनी नेश्राई हूया । तेह थकी अर्ध व न०, आसापल्लीई, कोठर्व (१) पुरई, फूरमान वाटिकाई, सोनहओ मातानी नश्रानो । तेह यकी अर्ध सोनइआ शिक (९०-२) दर पूरी, विसलनगरि, श्री वृद्धनगरई भार्यानी नेश्राई हूओ | एवं संख्याई त्रहिसठि हज्जार आव्या । तिहां प्राग्वाट वृ० सं० देवराजे श्री अभिनंदन सोनइया हुवा | सो० संग्राम श्रीगुरुनई कहई आ ज्ञान स्वामीनआ बिंब सप्त धातुमयि निपजाव्यो । ते श्री द्रव्य लीओ। गुरु कहई साधु हुई ते ए द्रव्य प.प दोषन . सूरीई प्रतिष्टयौ । तिणहिज अवसरि सं० देवराजिनई मूल जांणी एह थकी वेगलो रहि, जह थकी पंचमहावत हर्षि स्वच्यार शिष्यनई सूरी पद कीधा । तेहना नाम जाई । तिण थकी ए ज्ञान द्रव्यई ज्ञाननो यत्न करो। प्रथम मोहनंनदन नाम श्री मुनीसुंदर सूरी नाम दीधो लिखापयंति जिनशासनपुस्तिकानि १ । बीजा. शिध्य जयउदय नाम श्री जिनकिर्ति सूरि व्याख्यानयंति च पठति च पाठयति । दीयो । २ । श्रीजा शिष्य श्री भुवनधर्मनो नाम श्री श्रृण्वंति रक्षणविधौ च समाद्रियंते भुवनसुंदर सूरी दीधो । ३ । चोथा जयवंत हर्ष तेहनो से मर्त्यदेवशिवशर्म नरा लभंत ।। १ ।। नाम श्री जिणसुंदर सूरी दीधो । ४ । वि० सं० १४७८ भक्षाभक्षं तथापेयं पेयं वा कृत्याकृत्ययोः । वर्ष छत्रीस हजार ट का व्ययई सूरी पदो त्सव कीधा । गम्यागमनमा जापादयकादिक ।। २।। ए यार शिष्य युक्त श्री सूरी नगरी गामई स्नात्रोपदेश जेह थकी श्री वीरवाणी ओलखी प्राणी प्रत्यक्ष सुखने ना दायक तिहां थकी तारणगिरि 'श्री अजित दर्शन करी वरई । एहबु वचन श्री गुरुनु सांभली सोनी संग्रामे हणाद्र, पोसीणा नगरई आव्या । श्री गुरुना उपदेशे Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy