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अंक ३]
वार वंशावलि.
तेह मांहि पोताना आत्मानी शिक्षा रुपई वैराग्यना काव्य सं० (८६--१ ) १४६२ वर्षि पातसाह गज्जनी पान कहे है
आव्यइं हुतई श्री सिद्धाचलिं सा० समरा थापक वैराग्यरंगो परवंचनाय० ।। १ ।।
मूल नायक बिंब श्री चक्रेश्वरीई असुरनो उपद्रव परोपवादे मुखं सदोपं० ॥ २ ।।
जांणी अलाप कीधी । पछी सवा लाण पहार पायो एहवा ८ काव्य रुप आलायण लई लघु कम्र्मि मूक्यौ । पुनः रावखंडि बडाली वास्तव्य ओ० वृ० सा. हूई घणा जीवनें उपगारी थका वि० सं० १३८४ वर्षि गोविंदई असुरनी उपद्रव देषी तारणगिरई श्री कुमारसा. समर उपदेशक श्री रत्नाकर सूरीना स्वर्ग हूओ । पाल थापित प्रवालानो श्री अजितनाथना वित्र भूमी गृहे यदोक्त
भंडारी प्रासाद मध्ये नवीन बिंध थाप्यो | श्री देवसुंदर महयाडंबर जत्तो सूरी पयंवडा पल्लीए जायं। सरीई प्रतिष्ठधौ । तिहां श्री सराइं स्व पच शिष्य स्थणायर सूरी ना मेण जाओ सासणमि सिणगारो!१तेहने सूरी पदें कीधा । ते पांचना नाम कहे छई ।
णि परि श्री रत्नाकार सूरि संबंधः ।। पहिला श्री ज्ञानसागर सरी ते आवश्यक अवचुरी १ पुनः वि० सं० १३७५ वर्षि श्री सोमप्रभ सूरी आधनियुक्तिनी अवचूरी २ प्रमुष ग्रंथकारक ।। १ ।। स्वर्ग हुओ।
बीजा श्रीकुलमंडन सरा ते श्री कुमारपाल चरित्रना ४८ तत्पट्टे श्री सोमातेलक सूरी ! कारक || २ ।। तहनो वि० सं० १३५५ वर्षि जन्म । ( ८५-२) त्रीजा श्री गुणरत्न सूरी जेहनी अवष्टंभ १ रोध २ वि० सं० १३६९ वर्षि दीक्षा । वि० सं० १३७३ अनि विकथा ३ ए त्रिहुनी त नीम छई । क्रियारत्नसमुवर्षि सूरी पद । श्री सूरी विहार करता श्रीसिरोही च्चय १ घदर्शनसमुच्चय २ प्रमुष ग्रंथ कारक ।। ३ ।। नगरई चौमासि रह्या । तिहां श्री चंद्रशेखर सूरी १, चोथा श्री साधुरत्न सूरी ते यति जीतकल्प (८६-२) श्री जयानंद सूरी २, श्री देवसुंदर सूरी ३, ए त्रिहुं नी टीकाना कारक ४. ए च्यार शिष्य श्री गुरु चिरंजीव शिष्याने श्री सूरीई सूरी पदि कीधा। एहवई 'देवा थकई अल्प आयुई स्वर्ग हुआ | अनि पांचमा शिष्य प्रभोयं ' स्तवनकारक श्री जयानंद सूरि श्री गुरु चिर- श्रीसोमसुंदर सूरी विद्यमान विहरंत जाणी श्रीसूरीई जीवी थका स्वर्ग हुया । नव्य क्षेत्र समास, सत्तरी- श्रीसोमसुंदर सूरीने कछ देशिं विहारनी आज्ञा दीधी । सयठाणा, श्री तीर्थराज स्तुती प्रमुष ग्रंथकारक श्री एतलई श्रीसोमसुंदर सूरी केतलक दिने देवकई पत्तने सोम तिलक सूरी वि० सं० १४२४ वर्षि स्वर्ग हुआ। गया । नवखंढई, श्रीसिद्धक्षेत्र, श्रीरैवताचल फरसी देवके
४९ तत्पट्टे श्री देवसुंदर सूरी। पत्तने गया । गुरु देवसुंदर गोपगिरई श्रीवीरदर्शन करी
लघु गुरुभाइ श्रीचंद्रशेखर सूरी। केतलक दिने दीली नगरइं पुहता । तिहां श्रीमाली वृ० श्री देवसुंदर सूरीना वि० सं० १३९६ वर्षि जन्म | सा० जगसिंह १ भाइ सा० महणसिंहि २ श्री तपागछई वि० सं० १४.४ वर्षि लधु मरुदेसि महेश्वर गामि समस्त संबनें संघबाछल नीपजावी श्रीजिनदर्शननई समव्रत । वि० सं० १४२० वर्षि अणहिट पत्तनी सुरी यई चुरासि हजार टका सुकृति की सद्वस्त्र आभूषणि पद । एहवई वि० सं० १४४८ वर्षि श्री अहीमदाबाद तिलके ए रीते हूओ । एहवई ओडछा नगरई वि० नयर पणुं । वि० सं० १४५५ बर्षि ओ० वृ० सा० सं० १४६२ वर्षि श्रीदे वसुंदर सुरा स्वर्ग ह ओ ।
आंबा भाई सा• गणआ श्री सिद्धाचलि संवपति ५० श्री तत्पटे सोमसुंदर सूी। हुया । पुन: वि० सं० १४५६ वर्षि सा. आंबाई तहनो वि० सं० १४३० वर्षे जन्म | विक्र० व्रत लोधो । श्री देवसुंदर सरीनो शिष्य हुओ । वि० सं० १४३७ वर्षि व्रत | वि० सं० १४५० वर्षि वाचकपद |
Aho I Shrutgyanam